बंदर की जिज्ञासा और कील ( पंचतंत्र की कहानी – panchtantra ki kahaniyan ) – एक व्यापारी ने एक मंदिर बनवाना शुरू किया और मज़दूरों को काम पर लगा दिया। एक दिन, जब मजदूर दोपहर में खाना खा रहे थे, तभी बंदरों का एक झुंड वहाँ आ गया।
बंदरों को जो सामान हाथ लगता, उसी से वे खेलने लगते। एक बंदर को लकड़ी के एक मोटे लट्ठे में एक बड़ी सी कील लगी दिखाई दी।
कील की वजह से लट्ठे में बड़ी दरार सी बन गई थी। बंदर के मन में आया कि वह देखे कि आखिर वह है क्या। जिज्ञासा से भरा बंदर जानना चाहता था कि वह कील क्या चीज़ है। बंदर ने उस कील को हिलाना शुरू कर दिया।
वह पूरी ताकत से कील को हिलाने और बाहर निकालने की कोशिश करता रहा। आखिरकार, कील तो बाहर निकल आई लेकिन लट्ठे की उस दरार में बंदर का पैर फँस गया।
कील निकल जाने की वजह से वह दरार एकदम बंद हो गई। बंदर उसी में फँसा रह गया और पकड़ा गया। मजदूरों ने उसकी अच्छी पिटाई की।
कहानी से शिक्षा
इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि जिज्ञासा होना अच्छी बात है लेकिन जिस बात से हमारा कोई लेना-देना न हो, उसमें हमें अपनी टाँग नहीं अड़ाना चाहिए। नहीं तो हमारा हाल भी उसी बन्दर जैसा होगा जिसे उसकी जिज्ञासा के कारण पीटना पड़ा।