ज्ञानी चील का जाल और तालाब के जीव की कहानी – बहुत पुरानी बात है एक घने जंगल में एक चील का जोड़ा रहता था। वह दोनों ही काफी बुढ़े हो चुके थे, उनके पंजों की पकड़ अब कमजोर हो चुकी थी, आंखों से भी ठीक से कुछ भी दिखाई देना मुश्किल हो चुका था।
लिहाजा चील के लिए किसी भी जीव का शिकार करना अब बहुत मुश्किल हो गया था क्योंकि चील मुश्किल से ही किसी जीव या जानवर को देख पाती थी और मुश्किल से उसे पकड पाती थी और अगर उसे पकड़ भी लेती थी तो वह चील की कमजोर हो चुकी पकड़ से भाग जाता था।
अब चील कोई शाकाहारी प्राणी तो थी नहीं की आसानी से भोजन प्राप्त हो जाये। चील क्योंकि मांसाहारी होती है तो जिंदा जीव कोही पकड़कर उसे खाना होता था। कभी-कभार चील के जोड़े की किस्मत अच्छी होती तो उन्हें किसी और जानवर के द्वारा मारे हुए जानवर का बचा कुचा कुछ हिस्सा खाने को मिल जाता था।
पर किस्मत रोज तो मेहरबान नही होती है ना कभी-कभी कई दिनों या हफ्तों तक उन चीलों को खाना नसीब नहीं होता था। इस सब से परेशान उन चीलों में से एक चील को एक दिन एक उपाय सुझा और उसने रोजाना बढीया भोजन मिल सके इसलिए एक योजना बनाई और अपने साथी चील को बताई। इसी योजना के तहत उनमें से एक चील उड़कर एक तालाब के पास चली गयी।
चील तालाब के किनारे बैठकर अच्छे-अच्छे उपदेश, भजन और जीवों पर दया करने की कहानियाँ सुनाने लगी। चील को ये सब करते देख तालाब में रहने वाली मछलियाँ, मेढ़क, केकड़े आदि कई जीव बड़े अचभिंत हुए। क्योंकि यह सब चील की प्रवृत्ति के एकदम विपरीत था। आज तक तो तालाब के इन सब जीवों ने चील को दूसरे जीवों की निर्मम हत्या करते ही देखा था।
पर चील के इस बदले हुए व्यवहार से वो सभी आश्चर्य चकित थे और खुश भी की चलो कम से कम एक शिकारी तो कम हुआ जो उस तालाब के कई जीवों को अब तक मार चुका था। पर वह सब सतर्क भी थे कि कहीं यह चील की कोई चाल न हो। अतः कोई उसके पास न गया।
दिन बितते गये चील रोज निश्चित समय पर तालाब के किनारे आती और अच्छी-अच्छी बात करती। यह सब देख तालाब के जीव छुप जाते पर चील द्वारा दिये गये उपदेश सुनते रहते। चील रोज कहती कि मैं बदल चुकी हूँ और शाकाहारी बन चुकी हुँ मेरा यकीन करो और आओ मेरे पास बैठो पर चील की बातों का कोई भी जीव यकीन न करता।
एक दिन चील तालाब किनारे ध्यान मुद्रा में बैठी हुई थी। योजना के तहत तभी उसकी साथी चील एक मेढक को अपनी चोंच में पकड़े हुए वहाँ पहुंची। ध्यान मुद्रा में बैठी चील ने अपनी आँखें खोली और मेढक को चील की चोंच में देख दूसरी चील से कहा ‘अरे मित्र, यह क्या। जीव हत्या, ऐसा न करो यह अनुचित कृत्य है। अतः मेरा आग्रह है कि इस जीव को छोड दो।’
दूसरी चील ने कहा ‘क्या कहा छोड़ दो, ऐसे कैसे छोड़ दूँ। तुम्हें जो करना है कर लो पर मैं इसे नहीं छोंडुगा।’
यह सुन पहली चील ने कुछ मंत्र जैसा पढ़ना शुरू किया और दूसरी चील मेंढक को अपनी चोंच से छोड़कर चीखते-चिल्लाते हुए वहाँ से भाग गयी।
यह सब घटना को तालाब के जीव देख रहे थे। वो यह सब देख कर अचंभित हुए की कैसे चील नें सिर्फ मंत्र पढ़कर ही दूसरी चील को वहाँ से भगा दिया। सबको लगा की यह सब तो कोई दिव्य और सिद्धस्त चील ही कर सकती है। अब सबको यकीन हो गया कि यह कोई आम चील नहीं है बल्की अच्छी और चत्मकारी चील है।
अगले दिन से सब कुछ बदल चुका था, अब चील के आते ही तालाब के सभी जीवों ने चील का स्वागत किया और चील के उपदेश सुनने लगे। अब रोजाना ही ऐसा होने लगा और रोज यह सिलसिला चलता रहा। अब सब जीव चील के पास आने लगे और बैठकर उपदेश सुनने लगे, अब कोई भी चील से डरता नहीं था, सब भूल चुके थे कि यह वही चील है जो कभी उनके ही साथियों का शिकार किया करती थी।
अब चील की योजना अपने अंतिम पड़ाव में पहुंच चुकी थी। योजना के तहत चील तालाब किनारे ध्यान में बैठे-बैठे जोर से चिल्लाई ‘नहीं, ऐसा नहीं हो सकता।’
यह देख सब जीव चौंक गये और आपस में बातचीत करने लगे और उनमें से एक बूढ़े कछुए ने चील से पुछा कि है ज्ञानी चील क्या हुआ, जो आप ऐसे चिल्लाए?
चील ने बताया कि उसने अभी भविष्य देखा और उसने देखा कि सूखा पड़ने वाला है और इस तालाब का कोई भी जीव जिंदा नहीं बचेगा। यह सब सुन तालाब के जीवों में चीख पुकार मच गयी और हर तरफ अफरा तफरी का माहौल बन गया।
चील फिर चिल्लाई घबराओ नहीं इस सबसे बचने का उपाय मेरे पास है। सब ने एक साथ पूछा की वह क्या उपाय है ज्ञानी चील?
चील ने कहा कि यहाँ से कुछ कोस दूर ही एक आकर्षक तालाब है जहां अगर हम पहुँच जायें तो हम जीवित
रह सकते हैं। यह सुन सब खुश हुए पर यह सोच कर दुखी हुए कि इतनी दूर वो जायेंगे कैसे रास्ता लम्बा है और जंगली जानवरों का शिकार बन जाने का डर भी है और मछलियाँ तो पानी के बाहर जीवित भी नहीं रह सकती हैं तो वो भला कैसे दूसरे तालाब तक जायेंगीं। अब करें तो क्या करें बड़ी समस्या थी।
उन सबने चील से ही पूछा कि है ज्ञानी चील अब आप ही बताएँ कि क्या किया जाये। चील ने थोड़ी देर तक कुछ सोचने का दिखावा किया और कहा कि एक तरकीब है। मैं एक बड़े से पत्ते पर जो जीव जल के बगैर रह सकते हैं उनको बैठा लुंगा और फिर उड कर उन्हें दूसरे तालाब पर छोड़कर आ जाऊँगा। जो जीव जैसे मछलियाँ जल के बिना जिवित नहीं रह सकते हैं उन्हे ले जाने के लिए पत्ते को मोडकर पात्र बना लुंगी और उसमें पानी भर कर 2 या 4 मछलियों को भी ले जाते रहुँगी।
और इस तरह सभी जीव सुरक्षित रूप से दूसरे तालाब तक पहुँच जायेंगे। सबको तरकीब बहुत पसंद आयी, वह चील पर भरोसा करने लगे थे अतः किसी को चील की नियत पर कोई शक न हुआ। चील एक बड़ा सा पत्ता ले आयी और उसमें कुछ मछली और मेढकों को बैठाकर उड गयी और तालाब से दूर जाकर चील ने
ऊँचाई पर पहुँचकर पत्ते को छोड दिया। पत्ते पर बैठे मछली और मेढक चीखते हुए बड़े से पत्थर पर गिरे और मर गये। नहीं पर चील की साथी चील भी मोजुद थी। दोनों चीलों ने एक दूसरे की तरफ देखा और जोर-जोर से हँसते हुए चटखारे लेते हुए मृत मछली और मेढकों को खा गये।
यह सब दोनों चीलों की योजना थी जोकि सफल हुई अब ढोंगी चील जिसे तालाब के जीव ज्ञानी चील समझते थे। दूसरे तालाब पर पहुंचने की आशा में चील के साथ जाते और दोनों चीलों के पेट में पहुँच जाते। यह सिलसिला चलता रहा और दोनों बूढ़े और धूर्त चील अपनी मृत्यु तक बिना परिश्रम के तालाब के जीवों को अपना शिकार बनाते रहे।
कहानी से शिक्षा
अगर किसी व्यक्ति द्वारा उसकी प्रवृत्ति से विपरीत व्यवहार आपके साथ किया जा रहा है तो संभवतः आप उसके शिकार हैं और उसके द्वारा यह ढोंग आपको केवल उसके जाल में फँसाने के लिए किया जा रहा है। अतः ढोंगी लोगों से सचेत रहें और किसी को भी ज्ञानी मानकर आँखें मूंदकर उसकी बातों पर भरोसा न करने लगें।