भविष्य के लिए योजना – प्रेरक कहानी हिंदी में :- बहुत समय पहले की बात है सुदूर पहाड़ों के मध्य एक अवन्ति नामक राज्य था, अवन्ति राज्य चारों ओर से सुन्दर पहाड़ों की गोद में बसा हुआ था। राज्य में मान्यता थी कि अवन्ति राज्य की सीमा पर स्थित एक घने जंगल में एक राक्षस रहता जो जंगल में जाने वाले लोगों को खा जाता है और जंगली जानवरों का भोजन करता है।
कुछ बुजुर्गों का मत था कि जंगल के जानवर खत्म हो जाने पर वह राक्षस भोजन के लिए संभवतः कुछ ही वर्षों में राज्य पर भी आक्रमण करेगा। जिस कारण राज्य में यह प्रथा थी कि उस राज्य के हर राजा को प्रत्येक 5 साल में जंगल में जाना होगा और राक्षस का वध करना होगा लेकिन अब तक जितने भी राजा बने थे वह 5 साल बाद जंगल में जाकर कभी वापिस ही न आये और इसी तरह कई वर्ष बीत गए।
अभी अवन्ति राज्य के राजा सुदर्शन थे, राजा सुदर्शन से अवन्ती राज्य की प्रजा बहुत खुश रहती थी। राज्य की सीमा पर एक बहुत बड़ा जंगल था इसलिए जंगली जानवरों का राज्य में आने का खतरा बना रहता था, जिनका राजा सुदर्शन बहादुरी से सामना करते थे और लोगों की सेवा कर राजा सुदर्शन ने प्रजा के दिलों में एक अलग ही स्तर का सम्मान प्राप्त कर रखा था।
राजा सुदर्शन का अवन्ति राज्य में 5 सालों में से आखिरी साल था, राजा सुदर्शन अपनी प्रजा के लिए हर परेशानी से लड़ने के लिए हमेशा तैयार रहते थे राजा सुदर्शन ने सोचा कि अगर मैं प्रजा की सारी परेशानियों को दूर कर दूंगा तो शायद प्रजा मुझे राज्य की सीमा पर स्थित जंगल में नहीं भेजेगी और मैं जंगल में जाकर राक्षस से युद्ध करने से बच जाऊँगा क्योंकि आज से पहले जो भी राजा राज्य के सीमा पर स्थित जंगल में गया वह राजा फिर कभी लौटकर वापस नहीं आया।
समय बीतता गया और वह घड़ी भी आ गई, जब राजा सुदर्शन का राजकाल समाप्त होना था जिस कारण राज्य में सभा आयोजित हुई, राजा सुदर्शन यह सोचकर खुश थे कि उनकी प्रजा उनको जंगल नहीं भेजेंगी, परंतु जब सभा आयोजित हुई, तो बहुत से लोगों ने कहा कि राजा सुदर्शन हम सब की रक्षा राज्य में रहकर भी कर सकते हैं इसलिए राजा सुदर्शन को राज्य की सीमा पर स्थित जंगल में भेजने की जरूरत नहीं है, परंतु सभा के बुजुर्ग लोगों ने अंत में निष्कर्ष निकाला कि राज्य की प्रथा को पूरा करना आवश्यक है और राक्षस तो जंगल में है उसे वहीं मारा जाएगा। अगर राजा सुदर्शन 2 माह के भीतर उस राक्षस को मार देंगे तो राज्य में उनका ही अधिकार हो जाएगा।
यह सब बात सुनकर सारी प्रजा ने बुजुर्गों की बात मान ली और राजा सुदर्शन को जंगल भेजने के लिए सहमत हो गए, राजा सुदर्शन यह सब सुन बहुत दुखी हुआ कि इतने अच्छे से राज-काज चलाने के बाद भी उसे आखिरकार जंगल में जाना ही पड़ रहा है। फिर राजा सुदर्शन को राज्य के सभी लोग अवन्ती राज्य की सीमा पर स्थित जंगल तक छोड़ कर आ गए और अब राजा सुदर्शन को जंगल में अकेले ही यात्रा करनी थी, राजा सुदर्शन डर-डर के जंगल में चले गए और राज्य के सभी लोग अपने घर वापस आ गए।
कई माह बीत गए परंतु राजा सुदर्शन की कोई खबर नहीं आई और अवन्ति राज्य में फिर एक सभा का आयोजन हुआ और प्रजा ने यह निर्णय लिया कि अब नए राजा की नियुक्ति की जाएगी।
राज्य में नए राजा की नियुक्ति के लिए युद्ध प्रतियोगिता की जाती थी, जिसमें राज्य के वह लोग जो राजा के पद पर दावेदारी करना चाहते हैं उनके मध्य युद्ध करवाया जाता था और जो जीतता था, उसे राजा बनाया जाता था। कुछ माह बाद ही राजा पद के उम्मीदवारों के बीच युद्ध हुआ और आदित्य नामक युवक ने सभी दावेदारों को हरा दिया, जिसे फिर राजा के पद पर नियुक्त किया गया।
राज्य में नए राजा की नियुक्ति पर राज्य में खुशी का माहौल था। नए राजा आदित्य को पता था कि 5 साल पूरे होते ही उसे भी जंगल में जाना पड़ेगा और राक्षस से युद्ध करना पड़ेगा। महोत्सव के अगले ही दिन राजा आदित्य अवन्ती राज्य की सीमा पर स्थित उस जंगल की ओर गए और पता करवाया कि उस जंगल में कौन-कौन से जानवर रहते हैं और किस जानवर की संख्या कितनी है, जंगल बहुत बड़ा था तो यह जानकारी प्राप्त करने में लगभग एक साल का समय लग गया।
जैसे ही राजा आदित्य को जंगल की सारी जानकारी का पता तो राजा आदित्य ने राज्य के सभी जवान और साहसी लोगों की एक सेना बनवाई और उनको प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया, जिसमें से कुछ को हथियार चलाना और कुछ को मकानों का निर्माण का प्रशिक्षण देना शुरू किया और प्रशिक्षण के दौरान ही धीरे-धीरे सभी सैनिकों के मन से जंगल में राक्षस के होने का भय निकाल दिया और सैनिकों को समझा दिया कि जंगल में केवल जंगली जानवर हैं, यह प्रशिक्षण 2 साल तक चला, इन सब में राजा आदित्य के कार्यकाल के 3 वर्ष समाप्त हो गए थे।
राजा आदित्य ने अपने कार्यकाल के चौथे वर्ष में इस सेना को लेकर अवन्ती राज्य की सीमा पर स्थित जंगल में गए और धीरे-धीरे जंगली जानवरों को मारते रहे और वहाँ के कुछ-कुछ पेड़ कटवाते गए, अब राजा चुप चाप इस सेना से रोजाना धीरे-धीरे जंगल में बढ़ते चले गए। जंगल बहुत बड़ा था इसलिए लगभग एक वर्ष तक यह सब चलता रहा।
अब राजा आदित्य के राज्य कार्यालय का अंतिम वर्ष आ गया था, इस वर्ष के अंत तक दिन रात मेहनत से राजा आदित्य के सैनिकों ने जंगल में राजा के लिए महल और जितने संभव हो उतने लोगों के लिए घर बनाए। वर्ष के अंत एक मानो एक नया शहर स्थापित हो गया, परंतु यह केवल राजा आदित्य और राजा की सेना जानती थी, राज्य के अन्य लोग राक्षस के डर से जंगल की तरफ नहीं जाती थे तो किसी को पता ही नहीं चला की जंगल में क्या हो रहा है।
वह दिन भी आ गया जिस दिन सभा द्वारा राजा आदित्य को अवन्ति राज्य की सीमा पर स्थित जंगल जाना था। जंगल जाने की बात सुनकर हर राजा के चेहरे की हवाइयां उड़ी रहती थीं लेकिन यह पहली बार था कि कोई राजा इतना खुश था, वरना इससे पहले सभी राजा के मुँह पर मृत्यु का भय दिखता था, यह देख सबको आश्चर्य हो रहा था कि राजा जंगल जाने की बात से इतने खुश क्यों हैं।
राजा आदित्य पूरे राज्य के लोगों के साथ खुशी से जैसे ही राज्य की सीमा पर स्थित जंगल के पास पहुँचे तो सारे लोग देखते रह गए कि वहाँ जंगल की जगह एक सुन्दर शहर स्थापित था।
राज्य के सभी लोग आश्चर्यचकित थे तभी एक बुजुर्ग ने राजा आदित्य से पूछा कि “जहाँ घनघोर और खतरनाक जंगल था और लोग जहां जाने से डरते थे, वहां आज इतना खूबसूरत नगर कैसे बस गया !!”
तब राजा आदित्य ने बताया कि “यहाँ कभी भी कोई राक्षस नहीं था, केवल जंगली जानवर थे, जंगल घना होने के कारण अंधेरा अधिक रहता था, जिससे संभवतः किसी जानवर को ही सबने राक्षस समझ लिया और लोगों के मन में राक्षस का भय बैठ गया।”
सब आश्चर्यचकित हो राजा कि बात सुन रहे थे।
राजा आदित्य बोलते रहे “मुझसे पहले जितने भी राजा आए उन्होंने बस केवल अपने 5 साल के कार्यकाल पर ध्यान दिया, कुछ राजा भोग विलास में व्यस्त रहे तो कुछ राज्य की प्रजा को अपनी वीरता का परिचय देने में और खुश करने में लेकिन किसी ने भी उन 5 साल के आगे की नहीं सोचा, किसी भी राजा ने भविष्य के आगे की योजना नहीं बनाई। जब मैं राजा बना तो मुझे पहले से ही विदित था कि मुझे राजा बनते ही क्या-क्या करना है। इसलिए मैंने सभी जवान लोगों को प्रशिक्षण दिया और एक बेहतरीन और कार्यकुशल सेना तैयार की और आज मेरे सैनिकों की मेहनत आप सबके सामने है”
यह सब बात सुनकर राज्य के सभी लोग बहुत खुश हुए और राजा की जय-जयकार करते हुए, राजा आदित्य को कन्धों पर उठा के नए राज्य के महल में ले गए और सभी लोग नए शहर में खुशी-खुशी रहने लगे। राजा आदित्य की बहादुरी और बुद्धि के चर्चे कई और राज्यों तक भी पहुंचे और राजा जीवन पर्यन्त उस राज्य की सेवा करते रहे।
कहानी से शिक्षा
इस कहानी से हमें ये शिक्षा मिलती है कि आज अर्थात वर्तमान कितना ही अच्छा क्यों न हो हमें हमेशा ही अपने भविष्य के लिए भी सोचना चाहिए, आज अगर हम मेहनत, लगन और निष्ठा से कार्य कर लेंगे और आज से ही भविष्य की प्लानिंग करेंगे तो निश्चित ही हमारा भविष्य निखर जाएगा। साथ ही यह कहानी हमें यह भी सिखाती है कि दूसरों की गलती से शिक्षा लेनी चाहिए, जिससे हम अपने जीवन में वह गलतियां न दोहराएं।
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