राजकुमारी का निश्चय और कश्यप पहाड़ी के नीले फूल की कहानी हिंदी में :- कई समय पुरानी बात है सुदूर पूर्व की तरफ एक विशाल और भव्य नगर था जिसे लोग अलकापुरी के नाम से जानते थे। इस नगर का राजा बहुत ही पराक्रमी और कार्यकुशल था, राजा की एक रानी और एक ही संतान थी जो कि पुत्री थी।
राजा की पुत्री का नाम राजकुमारी वसुंधरा था, राजकुमारी वसुंधरा बहुत ही सुन्दर, योग्य, कर्मठ और युद्ध कलाओं में निपुण थी। राजकुमारी वसुंधरा के माता-पिता अब बूढ़े होते जा रहे थे इसलिए वे राजकुमारी वसुंधरा का विवाह समय पर करना चाहते थे परन्तु एक दिन अचानक राजकुमारी वसुंधरा के माता-पिता को भयंकर बीमारी हो गई, जिसमें राजकुमारी वसुंधरा के माता-पिता को दिखाई देना बंद हो गया।
राजकुमारी वसुंधरा ने राज्य के सभी वैद्यों को अपने महल में बुलवाया और हर तरह के उपचार करवाए परन्तु राज्य के किसी भी वैद्य को राजकुमारी वसुंधरा के माता-पिता की बीमारी का उपचार नहीं मिला।
अब राजकुमारी वसुंधरा दूसरे राज्य के वैद्यों को अपने राज्य में बुलाने लगी परन्तु किसी भी राज्य के वैद्य को राजकुमारी वसुंधरा के माता पिता की बीमारी का उपचार नहीं पता था। राजकुमारी वसुंधरा के माता-पिता का स्वास्थ्य दिन-प्रतिदिन बहुत ही खराब होता जा रहा था, जिस कारण राजकुमारी वसुंधरा बहुत परेशान रहने लगी।
एक दिन राजकुमारी वसुंधरा को पता चला कि नजदीक के ही जंगल में एक सिद्धि प्राप्त ऋषि आएं हैं जोकि बहुत ज्ञानी और चमत्कारी हैं। राजकुमारी ने अपने माता-पिता की बीमारी को ठीक करने के लिए उन ऋषि से मिलने की सोचा और वह ऋषि से मिलने गयीं।
राजकुमारी ने ऋषि के पास पहुंच, ऋषि को प्रणाम किया और जैसे ही कुछ बोलना चाहा वैसे ही वह ऋषि स्वयं ही बोल पड़े कि “सौभाग्यवती भव! राजकुमारी, मैं तुम्हारे यहां आने का प्रयोजन अच्छे से जानता हूं और मैं तुम्हारी सहायता भी कर सकता हूं लेकिन एक समस्या है।”
राजकुमारी काफी अचंभित हुईं कि ऋषि ने उन्हें कैसे पहचान लिया, राजकुमारी समझ गई कि जैसा उन्होंने सुना था बिल्कुल वैसा ही है ऋषि निश्चित ही चमत्कारी हैं और ऋषि की बात सुन राजकुमारी बोली कि ” क्या समस्या है मुनिवर ?”
ऋषि बोले कि आपके माता-पिता के लिए मुझे एक जड़ी बूटी की आवश्यकता है जड़ी बूटी केवल यहां से कुछ दूरी पर स्थित कश्यप पहाड़ पर ही उगती है वह जड़ी-बूटी नीले रंग वाला एक फूल है। अगर वह हो तुम तोड़ने के बाद पहले सूर्यास्त से पहले मेरे पास ले आओ तो मैं उसकी औषधि बना तुम्हारे माता-पिता का उपचार कर सकता हूं और वह फिर से पहले जैसे ही स्वस्थ हो जाएंगे।
यह सुन राजकुमारी बहुत ही प्रसन्न हुई और बोली “मुनिवर इसमें तो कोई भी समस्या नहीं है मैं तुरंत ही सैनिकों की एक टुकड़ी वहां भेज कर वह नीले फूल मंगा लेती हूं”
यह सुन ऋषि बोले कि “राजकुमारी ऐसा नहीं हो सकता है वह एक चमत्कारी फूल है जो कि 100 वर्षों में केवल एक बार ही उगता है, वह भी केवल कश्यप पहाड़ी की चोटी पर और उस फूल की बनी औषधि का लाभ केवल वही प्राप्त कर सकता है जिसने कि उसको प्राप्त करने के लिए स्वयं ही परिश्रम किया हो अतः वह नीला फूल आपको अकेले ही तोड़कर लाना होगा अन्यथा उसका असर नहीं होगा।”
यह सुन राजकुमारी वसुंधरा बिना देर करते हुए ऋषि को प्रणाम कर अपने महल को चली गई ताकि वह जल्द से जल्द कश्यप पहाड़ी पर चढ़ाई करने के लिए अपनी तैयारी पूरी कर सकें। महल पहुंच राजकुमारी ने अपने मंत्री गणों को पूरी बात से अवगत कराया तो सभी ने राजकुमारी को ऐसा करने से मना किया।
राजकुमारी को सेनापति ने भी कहा कश्यप पहाड़ बहुत ही ऊंचा है और उसकी छोटी तक पहुंचने का कोई भी रास्ता नहीं है साथ ही वह पहाड़ बहुत बड़े घने जंगल से घिरा हुआ है जहां बहुत सारे जंगली जानवर और लुटेरे रहते हैं, अतः राजकुमारी किसी भी हाल में वहां ना जाएं।
राजकुमारी पहले ही अपना मन बना चुकी थी और वह किसी भी हाल में अपने माता पिता को फिर से पहले जैसा स्वस्थ देखना चाहती थी, अतः उन्होंने किसी की भी ना सुने और बिना किसी को बताए मध्य रात्रि में ही अपने महल से कश्यप पहाड़ की ओर चल पड़ी।
राजकुमारी जंगल में कुछ दूर आगे बढ़ी ही थी कि तभी राजकुमारी को पांच लुटेरों ने घेर लिया। एक अकेली स्त्री को जंगल में देख लुटेरे काफी आश्चर्यचकित हुए और उन्होंने राजकुमारी से पूछा की ऐसी क्या वजह है कि तुम अकेले ही इस घने जंगल में घूम रही हो।
राजकुमारी उन लुटेरों से बिल्कुल भी ना डरी और उसने बताया कि वह एक राजकुमारी है और अपने माता-पिता का इलाज करने के लिए कश्यप पहाड़ी से एक जड़ी बूटी लेने के लिए जा रही है। यह सुन वह लुटेरे काफी हंसे और बोले “या तो तुम पागल हो या फिर हमें पागल बना रही हो! इस जंगल को पार कर उस पहाड़ी की चोटी तक पहुंचना असंभव है और अगर तुम एक राजकुमारी होती तो कभी भी अकेले इस जंगल में नहीं आती निश्चित ही तुम कोई बहरूपिया हो जो यहां हमारी जासूसी करने आया है।”
और लुटेरों ने एक दम से राजकुमारी पर हमला कर दिया बचाव मैं राजकुमारी ने डटकर उन लुटेरों का सामना किया और लुटेरों को बुरी तरह से पराजित कर दिया। यह देख लुटेरे काफी आश्चर्यचकित हुए कि एक स्त्री ने उन पांचों लुटेरों को हरा दिया और वह मान गए कि वह एक आम स्त्री नहीं बल्कि एक राजकुमारी है जो युद्ध कलाओं में भी बहुत निपुण है।
लुटेरों ने राजकुमारी से अपनी जान की भीख मांगी और फिर लूटपाट का काम ना करने की कसम खाई। साथ ही उन्होंने राजकुमारी को जंगल में और अंदर ना जाने की सलाह दी फिर वह वहां से चले गए।
क्योंकि राजकुमारी का निश्चय दृढ़ और अटल था अतः वह कश्यप पहाड़ की ओर आगे बढ़ती रही। वह कुछ आगे बढ़ी ही थी कि तभी उस पर एक तेंदुए ने हमला कर दिया, राजकुमारी ने उस तेंदुए का भी बहुत ही निडरता से सामना किया और उसको मार भगाया लेकिन इस सब में राजकुमारी बुरी तरह से घायल हो गयी।
राजकुमारी ठीक से चल भी नहीं पा रही थी लेकिन राजकुमारी ने हिम्मत नहीं हारी, वह अपने लक्ष्य को किसी भी हाल में हासिल करना चाहती थी।
राजकुमारी को और भी कई जंगली जानवरों का सामना करना पड़ा लेकिन राजकुमारी दर्द में होते हुए भी बिना डरे बिना थके आगे बढ़ती ही जा रही थी। तभी राजकुमारी को एक बहुत ही विशाल नदी का भी सामना करना पड़ा, राजकुमारी उस नदी के बहाव से भी ना डरी और उसे पार करते हुए आगे बढ़ गई।
कुछ ही घंटों बाद राजकुमारी कश्यप पहाड़ी की आधी चढ़ाई पार कर चुकी थी लेकिन अब ऊपर की चढ़ाई बहुत ही कठिन और सीधी थी जिस पर चढ़ पाना बहुत ही मुश्किल था। वह कुछ ऊपर बढ़ती और फिर नीचे को फिसल जाती वह काफी समय तक ऐसे ही प्रयास करती रही लेकिन वह जितना ऊपर जाती फिसल कर उतना ही नीचे आ जाती।
राजकुमारी समझ गयी कि ऐसे तो वह कभी ऊपर नहीं पहुँच पायेगी और उसे अब ऊपर जाने का कोई दूसरा ही रास्ता ढूंढना पड़ेगा। उसने थोड़ी देर इधर-उधर देखा तो पाया कि पहाड़ की चोटी तक कुछ पेड़-बेल की जड़ें गई हुई हैं अगर वह उनको पकड़ कर लटक लटक कर ऊपर चढ़ने का प्रयास करें तो संभवतः वह पहाड़ की चोटी तक पहुंच सकती है।
लेकिन इस सब में जान का बहुत खतरा है क्योंकि जिस तरफ से पेड़ की जड़े जा रही हैं उस तरफ गहरी खाई है उसका संतुलन बिगड़ा तो वह सीधे ही गहरी खाई में जा गिरेगी जहां उसकी मृत्यु निश्चित है लेकिन राजकुमारी अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए इतनी दृढ़ निश्चय थी कि उसने अपनी जान की परवाह भी नहीं की और उन बेल और जड़ों के सहारे ऊपर चढ़ना शुरु कर दिया।
इस सब में राजकुमारी के हाथ बुरी तरह से छिल गए और उन से खून आने लगा लेकिन राजकुमारी ने हार नहीं मानी और वह ऊपर की ओर बढ़ती ही रही कुछ कमजोर बेले भी टूट कर उसके हाथों में आ गई और कई बार लगा कि वह नीचे की ओर गिर जाएगी लेकिन राजकुमारी ने अपना संतुलन संभाला और बिना डरे ऊपर की ओर बढ़ती ही रही।
कुछ ही देर के परिश्रम के बाद राजकुमारी ने पाया कि वह पहाड़ की चोटी पर पहुंच गई है जहां कि वह नीले फूल मौजूद थे। राजकुमार जी ने बिल्कुल भी देर नहीं की और उस पौधे को तुरंत ही तोड़ कर वह पहाड़ के नीचे उतर आई।
इस सब में राजकुमारी ने अपने बिल्कुल भी परवाह नहीं की, उसने अपने हाथों का इलाज करने के लिए भी समय नहीं गवाया और जल्द से जल्द ऋषि के पास जाने के लिए आगे बढ़ती रही। राजकुमारी को फिर से नदी का और जंगली जानवरों का सामना करना पड़ा। वह कई घंटों से चल रही थी और भूखी भी थी लेकिन राजकुमारी ने अपने स्वास्थ्य की चिंता न करते हुए अपने माता-पिता के बारे में सोचा और आगे बढ़ती रही।
कुछ ही घंटों में सूर्यास्त होने से पहले राजकुमारी ऋषि के पास पहुंची और उन्हें प्रणाम करते हुए वह खुद दिया। राजकुमारी की हालत देख ऋषि काफी व्याकुल हुए लेकिन वह खुश थे कि राजकुमारी ने एक असंभव कार्य कर दिखाया है उन्होंने बिना समय गवाएं हुए उस फूल से एक औषधि तैयार की और राजकुमारी को दे दी।
राजकुमारी भी बिना समय गवाते हुए महल पहुंच गई और अपने माता-पिता को वह औषधि दे दी और वह ठीक हो गए। राजकुमारी ने एक असंभव सा कार्य संभव कर दिखाया था यह देख हर कोई राजकुमारी की निडरता और बहादुरी का कायल हो गया, पूरा मंत्री मंडल और राज्य राजकुमारी की जय जय कार करने लगा।
राजा-रानी के ठीक होने के बाद राजकुमारी उन दोनों के साथ ऋषि का धन्यवाद करने के लिए उनके पास गई। राजा रानी को ठीक देख रही बहुत प्रसन्न हुए और राजकुमारी के साहस, निडरता और दृढ़ निश्चय की प्रशंसा की। साथ ही राजकुमारी से पूछा कि उसने यह असंभव कार्य कैसे संभव कर दिखाया ?
राजकुमारी ने कहा कि “मुनि वर, मैं अपने माता-पिता को सही करने के लिए कई सारे उपाय अपना चुकी थी लेकिन सफलता नहीं मिली जब आपने मुझे राह दर्शाई तो मेरे पास उस पर चलने के सिवा कोई और रास्ता शेष नहीं था और मैं यह भी जानती थी कि अगर अब मैं हिम्मत हार गई तो मेरे माता पिता कभी स्वस्थ नहीं हो पाएंगे। अतः मरती क्या ना करती, मैंने मन ही मन यह दृढ़ निश्चय कर लिया था कि मेरे प्राण रहें चाहे ना रहें, मैं अपने माता-पिता को स्वस्थ करके ही सांस लूंगी। भगवान की कृपा, आपका और अपने माता पिता के आशीर्वाद से यह असंभव कार्य मैंने संभव कर दिखाया”
कहानी से शिक्षा
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमारे जीवन में कोई भी परेशानी या समस्या हमारे दृढ़ निश्चय से बड़ी नहीं हो सकती है अगर राजकुमारी लोगों के बोलने पर ही हार मान लेती और कभी प्रयास ही न करती तो वह कभी अपने माता-पिता को ठीक न कर पाती। इसलिए हमें कभी भी दूसरों के बोलने पर ही कोशिश करना नहीं छोड़ना चाहिए। अंतिम साँस तक प्रयासरत रहना चाहिए कई बार हमारा अंतिम प्रयास भी हमें सफल बना सकता है।
पढ़ें – राजा का गुस्सा और चालाक लुटेरा।