चार प्रश्न और तीन उत्तर – महात्मा बुद्ध की रोचक कहानी हिंदी में :- बहुत समय पहले की बात है एक सुन्दर सा स्वर्णगिरी नामक नगर था, राज्य में गौतम बुद्ध के धार्मिक उपदेशों का प्रभाव बहुत ज्यादा था, यहाँ समय-समय पर कई सरे धार्मिक प्रयोजन होते रहते थे।
स्वर्णगिरी राज्य में अनुरक नाम का एक 18 वर्षीय युवक रहता था, जिसके माता पिता का देहांत हो चुका था। वह बहुत मेहनती युवक था। अनुरक एक कपड़ा व्यापारी की दुकान में काम किया करता था, वहां से मिले पैसे से ही उसका गुजर बसर चलता था।
अनुरक रोज सुबह जल्दी दुकान चले जाता था और रात में देर से घर आता था और घर में अकेले होने के कारण अनुरक का मन अशांत रहता था, अनुरक घर आकर रोज अपने लिए वह चार रोटी और सब्जी बनाता।
हमेशा की तरह ही आज भी घर पहुँचने के बाद अनुरक ने अपने लिए चार रोटी बनाई और वह हाथ धोने बाहर गया, जब वह हाथ धोकर वापस आया तो अनुरक ने देखा, वहाँ चार रोटी की जगह केवल तीन रोटी ही थी, सोच में पड़ गया कि आखिर उसकी एक रोटी कहाँ चली गयी?
कुछ देर सोचने के बाद अनुरक ने सोचा शायद गलती से उसने आज तीन ही रोटी बनाई हो और वह उन्हीं तीन रोटी को खाकर सो गया। फिर अगले दिन रोज़ की तरह सुबह दुकान पर गया और रात को देर से लौटा।
आने के बाद अनुरक ने अपने लिए फिर से चार रोटी और सब्जी बनाई फिर हाथ धोने चला गया, जब वह वापस आया तो फिर उसकी चार रोटी की जगह सिर्फ तीन ही रोटी थी, वह परेशान हो गया उसने इधर उधर देखा पर कोई नहीं था, यह सिलसिला बहुत दिन तक चलता रहा और वह परेशान हो गया।
एक दिन उसके दिमाग में आया कि क्यों न आज छुपकर देखा जाये कि आखिर यह एक रोटी जाती कहाँ है। उसने फिर चार रोटी बनायीं और हाथ धोने के बहाने घर के बहार छुपके खड़ा हो गया, तब अनुरक ने देखा उसकी एक रोटी चूहा ले जा रहा है।
अनुरक जल्दी से वहाँ आया और अनुरक ने चूहे से कहा “तुम क्या कर रहे हो ? मैं मुश्किल से खुद के लिए पैसे कमाता हूँ और सिर्फ चार रोटी बनाता हूँ, उसमें से भी अगर तुम एक रोटी ले लोगे तो फिर मेरे लिए तो खाली तीन ही रोटी बचेंगी।”
यह सुन चूहा बोला “भाई यह मेरी किस्मत की रोटी है और इसे मुझे ले जाने दो।”
यह सुन अनुरक बोला “ये क्या बात हुई !! यह रोटी तुम्हारी किस्मत की कैसे है ?”
तब चूहा, अनुरक से बोला “तुम्हारे सारे प्रश्नों के उत्तर केवल गौतम बुद्ध ही दे सकते हैं, तुम उनके पास जाओ।”
अनुरक भी काफी समय से गौतम बुद्ध से मिलना चाहता था, वह यह जानना चाहता था कि इतना परोपकारी और मेहनती होने के बाद भी उसके जीवन में इतने कष्ट क्यों हैं ?
यह सोच अनुरक ने उस चूहे की बात मान ली और अगले दिन ही अनुरक दुकान के मालिक के पास गया और अपने मालिक को रात की पूरी घटना बताई, यह सुन अनुरक के मालिक ने कहा “ठीक है जाओ, लेकिन अब अगर तुम गौतम बुद्ध के पास जा ही रहे हो तो मेरा भी एक प्रश्न पूछ लेना।”
अनुरक बोला क्या ?
मालिक बोला “मेरी बेटी 18 साल की हो गयी है और वह जन्म से आज तक नहीं बोल पाई है, क्या मेरी बेटी कभी बोल पाएगी ?” यह कहते कहते अनुरक के मालिक की आँखों में आँसू आ गए।
अनुरक ने अपने मालिक से कहा “आप परेशान ना हों, मैं जरूर आपका प्रश्न पूछूंगा” और अनुरक यह कह कर अपनी यात्रा पर निकल गया।
गौतम बुद्ध स्वर्णगिरी नगर से काफी दूर रहा करते थे इसलिए अनुरक को बहुत लम्बी यात्रा तय करनी थी। अनुरक ने जैसे ही आधी यात्रा की, अनुरक को आधी यात्रा में पहाड़ों में एक जादूगर मिला।
अनुरक उस जादूगर के पास गया और गौतम बुद्ध के पास पहुँचने का रास्ता पूछा। जादूगर ने अनुरक से गौतम बुद्ध के पास जाने का प्रयोजन पूछा। अनुरक ने सारी बात जादूगर को बता दी, अनुरक की बात सुन जादूगर ने बताया कि इस बड़े से पहाड़ को पार कर तुम्हें एक नगर दिखेगा, वहां जाकर तुम आगे का रास्ता पूछ लेना।
पहाड़ देख अनुरक ने कहा कि “इस पहाड़ को पार करने में तो काफी वक्त लगेगा !!”
यह सुन जादूगर ने कहा कि “अगर तुम मेरा भी एक प्रश्न महात्मा बुद्ध से पूछने का वचन दो तो मैं तुम्हें चंद छड़ों में पहाड़ पार करवा सकता हूँ”
अनुरक ने कहा कि “मैं अवश्य ही आपका प्रश्न पूछ दूंगा, बताइए कि आपका प्रश्न क्या है ?”
तब जादूगर ने कहा कि तुम गौतम बुद्ध से पूछना कि “मैं हजारों वर्षों से इस वन में तपस्या कर रहा हूं, मुझे स्वर्ग की प्राप्ति कब होगी?”
अनुरक ने हाँ में सर हिलाया और यह देख जादूगर ने जैसे ही छड़ी घुमाई वैसे ही अनुरक पहाड़ की दूसरी तरफ पहुंच गया।
महात्मा बुद्ध तक पहुंचने की यात्रा बहुत लम्बी थी इसलिए अनुरक के सामने काफी चुनौतियां आती रहीं, कुछ ही देर बाद अनुरक को एक बहुत बड़ी नदी नजर आयी वह उसे पार करनी थी, अनुरक को समझ नहीं आ रहा था कि वह इस नदी को कैसे पार करे, वह इधर-उधर मदद के लिए देख रहा था पर उसे कोई नजर नहीं आया।
थोड़ी देर में अनुरक ने नदी में एक विशाल कछुआ आता देखा, कछुए के किनारे पर पहुंचते ही अनुरक ने कछुए से पूछा कि “कछुए जी!! क्या आप मुझे यह नदी पार करवा सकते हैं?”
तब कछुए ने अनुरक से पूछा “तुम यह नदी पार करके कहां जाना चाहते हो?”
अनुरक ने कछुए को पूरी बात बता दी, यह सुन कछुए ने अनुरक से कहा “अगर ऐसी ही बात है तो मेरा भी एक प्रश्न का उत्तर गौतम बुद्ध से पूछ लाओगे तो मैं तुमको अभी पीठ पर बैठाकर नदी पार करवा दूंगा।”
अनुरक ने कछुए से कहा “हाँ, मैं जरूर आपके प्रश्न का उत्तर ले आऊँगा”
यह सुन कछुए ने अनुरक को अपनी पीठ पर बैठाकर नदी पार करवा दी। कछुए ने अनुरक को यह प्रश्न पूछने को कहा कि “वह ड्रेगन बनना चाहता है अतः वह ड्रैगन कब बनेगा?”
यह सुन अनुरक हामी में सर हिलाकर यात्रा पर आगे चल दिया।
इन सब चुनौतियों के बाद आख़िरकार अनुरक गौतम बुद्ध के पास पहुँच ही गया। अनुरक ने देखा कि गौतम बुद्ध की सभा में बहुत से लोग थे, कुछ देर में गौतम बुद्ध ने कहा “यहाँ जितने भी लोग आये हैं वे अपने कोई भी तीन सवाल पूछ सकते हैं।”
गौतम बुद्ध की यह बात सुनकर अनुरक सोच में पड़ गया क्योंकि उसको अपने मालिक, जादूगर, कछुए और स्वयं का सवाल मिलाकर कम से कम चार सवाल तो पूछने ही थे। अब वह काफी दुविधा में था कि वह किस-किस का सवाल पूछे।
कुछ देर बाद जब अनुरक की बारी आई तो अनुरक ने गौतम बुद्ध से सबसे पहले अपने मालिक का सवाल पूछा तो गौतम बुद्ध ने जवाब दिया कि “जब आपके मालिक की बेटी की शादी होगी तो वह बोलने लगेगी।”
फिर अनुरक ने उस जादूगर का सवाल पूछा तो गौतम बुद्ध ने कहा “जब वह जादूगर अपनी छड़ी त्याग देगा, उस दिन वह स्वर्ग चले जाएगा।”
आखिर में अनुरक ने गौतम बुद्ध से कछुए का प्रश्न पूछा कि “वह कछुआ ड्रैगन कब बनेगा?” तब महात्मा बुद्ध ने कहा कि “जब वह कछुआ अपना कवच उतार देगा वह ड्रैगन बन जाएगा।”
अनुरक इन तीन सवालों के जवाब लेकर अपने घर की तरफ बढ़ चला। अनुरक सबसे पहले नदी में कछुए से मिला कछुए ने अनुरक को नदी पार करवाई और अपने प्रश्न का उत्तर मांगा तो अनुरक ने बताया “गौतम बुद्ध ने कहा कि जब तुम अपना कवच उतार दोगे तो तुम ड्रेगन बन जाओगे”
यह सुन जैसे ही कछुए ने अपना कवच उतारा वह ड्रैगन बन गया और उस कवच में अनुरक को चमचमाते हुए 3 मोती मिले। ड्रैगन बने हुए कछुए ने उपहार स्वरूप वह तीन मोती खुशी-खुशी अनुरक को दे दिए।
कुछ दिनों की यात्रा करने के बाद अनुरक उस बड़े से पहाड़ के पास पहुंचा जिसे जादूगर ने पार करवाया था, वहां पहुंचकर अनुरक ने जादूगर को आवाज लगाई और जादूगर वहां प्रकट हो गया। जादूगर ने अनुरक को पहाड़ पार करवाया और अपने प्रश्न का उत्तर मांगा।
तब अनुरक ने जादूगर को बताया कि गौतम बुद्ध ने कहा है “जब जादूगर अपनी छड़ी त्याग देगा तो वह स्वर्ग चले जाएगा” यह सुनकर जादूगर ने अपनी छड़ी अनुरक को दे दी ओर वह स्वर्ग चले गया।
अंत में अनुरक अपने मालिक के घर पहुंचा और अपने मालिक से मिल सारी बात बताई। अनुरक ने मालिक के प्रश्न का उत्तर दिया कि “जब आपकी बेटी की शादी होगी तब वह बोलने लगेगी।”
यह सुनकर अनुरक का मालिक अनुरक से बोला “मुझे पता है कि महात्मा बुद्ध यहाँ से बहुत दूर रहते हैं, बुद्ध से मिलने के लिए तुमने बहुत सी कठिनाइयों का सामना किया है और तुम अपना प्रश्न न पूछ कर मेरे और अन्य लोगों के प्रश्नों का उत्तर लाये हो, जो बताता है कि तुम बहुत ही साहसी, होनहार, कर्तव्यनिष्ठ और परोपकारी हो। मुझे मेरी बेटी के लिए तुमसे अच्छा लड़का नहीं मिलेगा।”
फिर अनुरक के मालिक ने अपनी बेटी व अनुरक की शादी करवा दी, शादी होते ही अनुरक के मालिक की बेटी बोलने लगी वह देख अनुरक के मालिक बहुत खुश हुए।
अनुरक के पास अब तीन कीमती मोती थे जिन्हें बेचकर अनुरक अमीर हो गया था, उसके पास जादूगर की छड़ी थी, जिससे अनुरक ताकतवर बन गया और खुशी से अपना जीवन यापन करने लगा।
कहानी से शिक्षा
यदि हम दूसरों की परेशानी में मदद करते हैं तो भगवान भी स्वयं हमारी मदद करते हैं, इसलिए जितना संभव हो हर किसी की मदद करनी चाहिए और अपने स्वार्थ से पहले दूसरों का भला सोचना चाहिए। जैसे कि अनुरक ने दूसरों की परेशानी देखी और उनके सवालों के जवाब गौतम बुद्ध से पूछे न कि स्वयं के।