चमत्कारी साधु और परेशान नन्हा सांप की कहानी हिंदी में – बहुत समय पहले की बात है एक बहुत सुंदर जंगल में कई सारे जानवर रहा करते थे, उस जंगल में एक चमत्कारी साधु भी रहा करते थे। वह साधु कई सालों से जंगल में स्थित अपनी कुटिया में रहते और तपस्या में लीन रहते।
जिस दिन साधु तपस्या न करते उस दिन जंगल में घूम-घूमकर साधु सारे जानवरों की समस्या सुनते, साधु सदैव सुबह जल्दी उठकर नदी में स्नान करते फिर सूर्य को जल अर्पित कर अपने दिन की शुरुआत करते थे।
सूर्य को जल अर्पित करने के बाद साधु सदैव पूरे जंगल का दौरा करते थे, यदि कोई भी पशु-पक्षी चिंतित होता तो साधु हर चिंतित पशु-पक्षी की परेशानी सुनते और उसका हल उसे बताते या अपनी चमत्कारिक शक्तियों से समस्या हल कर देते। साधु सभी पशु पक्षियों को बहुत प्रेम करते थे और पशु-पक्षी भी साधु को प्रेम करते।
एक दिन साधु सदैव की तरह सुबह सूर्य को जल अर्पित कर जंगल का दौरा कर रहे थे तभी साधु ने देखा सभी जानवर एक दूसरे के साथ खेल रहे हैं लेकिन उन सभी जानवरों में केवल एक छोटा सांप का बच्चा बहुत दुःखी सबसे दूर बैठा है। साधु उस छोटे सांप के पास गए और उस छोटे साँप से पूछा – “क्या हुआ बालक! तुम इतने परेशान क्यों हो ? सारे जानवर खुशी से एक-दूसरे के साथ खेल रहे हैं परन्तु तुम इन सब जानवरों के साथ नहीं खेल रहे हो?”
यह सुनकर वह छोटा साँप बोला – “साधु प्रणाम! मैं खुश नहीं हूँ इसलिए मेरा मन खेलने में भी नहीं लग रहा है”, साधु ने छोटे सांप से पूछा- “क्यों, तुम खुश क्यों नहीं हो?”
छोटे साँप ने बोला – “साधु महाराज मैं बहुत परेशान हूँ क्योंकि मैं जब भी खेलने जाता हूँ एक मोर है जो मुझे अपना शिकार बनाने की कोशिश करता है, मुझे उससे बहुत डर लगता है इसलिए मैं हमेशा झाड़ियों में छिपा रहता हूँ। मुझे हमेशा डर लगता है कहीं वह मोर आकर मुझे अपना खाना ना बना ले इसलिए मैं कभी भी खुशी से खेल नहीं पाता, मुझे अपना हर दिन आखिरी दिन ही लगता है, अब आप ही बताइए ऐसे में मैं खुश कैसे रह सकता हूँ ? मैं कैसे खेल सकता हूँ?”
तब साधु छोटे सांप से बोले – “बालक साँप तुम परेशान न हो, तुम कल सुबह मेरे पास आ जाना, मैं तुम्हारी इस समस्या को हल कर दूँगा, जिससे फिर तुम्हें उस मोर से डरने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी और तुम भी सारे जानवरों की तरह खुशी से खेल पाओगे।”
वह छोटा साँप यह सुनकर बहुत खुश हुआ और साधु से बोला – “जी साधु महाराजा मैं कल जरूर आपकी कुटिया में आ जाऊँगा।”
अगले दिन वह छोटा साँप खुशी-खुशी साधु की कुटिया में चले गया, उसी वक्त साधु स्नान कर अपनी कुटिया में आ रहे थे। साधु ने छोटे साँप से कहा – “आज मैं तुम्हें अपनी योग सिद्धि से मोर बना देता हूँ फिर तुम्हें उस मोर से डर नहीं लगेगा” और साधु ने अपनी तपस्या की योग सिद्धि से छोटे से सांप को मोर बना दिया।
वह छोटा साँप खुश हो गया और बोला – “साधु महाराज की जय हो! धन्यवाद, आपने मुझे आज मोर बना दिया, अब मुझे किसी भी मोर से बिल्कुल भी डर नहीं लगेगा और मैं खुशी से बिना डरे पूरे जंगल में घूम सकता हूँ और अपने साथियों के साथ खेल सकता हूँ।” यह कहकर छोटा सांप जंगल की तरफ चले गया।
उस दिन वह छोटा सांप बहुत खुश था क्योंकि अब वह मोर बन चुका था, उस पूरे दिन वह छोटा सांप घूमता रहा अन्य जानवरों से मिलता रहा। वह नन्हा साँप जोर-जोर से बोल रहा था, अब तो मैं जिंदगी भर खुश ही रहुंगा क्योंकि जिससे मैं डरता था आज मैं वही बन चुका हूँ।
कुछ समय बाद वह नन्हा सांप जो अब मोर के वेश में था उन साधु की कुटिया में फिर से आया और साधु के सामने रोने लगा। साधु ने उस नन्हे साँप से पूछा – “अब तो तुम खुद ही मोर हो, तो तुम्हें उस मोर से भी डर नहीं रहा है तो आखिर फिर तुम रो क्यों रहे हो?”
तो नन्हा साँप रोते-रोते बोला – “साधु महाराज प्रणाम! हाँ मैं बहुत समय तक खुश था लेकिन जब मैं कल खेल रहा था तो मेरे पीछे एक शेर पड़ गया और बहुत मुश्किल से मैं उस शेर से अपनी जान बचा पाया हूँ। साधु महाराज क्या आप मुझे शेर बना सकते हैं?”
साधु महाराज मुस्कुराये और उस नन्हे साँप को शेर बना दिया। नन्हा साँप अब शेर बनकर बहुत खुश हो गया और बोला – “साधु महाराजा धन्यवाद, अब मुझे किसी से भी डर नहीं लगेगा।”
नन्हा साँप अब शेर बनकर बहुत खुश था अब उस नन्हे सांप जो अब शेर था, उससे जंगल के सारे जानवर डरने लगे, नन्हे सांप को भी शेर बनकर बहुत आनन्द आने लगा, पहले नन्हा साँप केवल खेलने के उद्देश्य से जानवरों के पास जाता था परंतु अब नन्हा सांप सारे जानवरों को डराने के लिए जानवरों के पास जाने लगा।
एक दिन की बात है नन्हा शेर जंगल में घूम रहा था तभी नन्हे शेर ने एक हिरण को देखा और फिर नन्हा सांप हिरण को डराने के लिए धीरे-धीरे हिरण के पास जा ही रहा था कि उसी समय शेर बने नन्हे साँप के हाथ में एक तीर आकर लगा, शेर रूपी नन्हे साँप ने देखा की उसके पीछे एक शिकारी खड़ा है।
शिकारी को देखकर शेर रुपी नन्हा साँप बहुत मुश्किल से अपनी जान बचाकर भाग पाया, उस पूरे दिन नन्हा साँप इधर से उधर अपनी जान बचाने के लिए भागता रहा लेकिन उस शिकारी ने शेर रुपी नन्हे साँप का कई दिनों तक पीछा करना नहीं छोड़ा। अब तक जो शेर रुपी नन्हा साँप जंगल में सब जानवरों को डरा रहा था, वह शेर रुपी साँप जंगल में खुद के लिए खाना ढूंढने में भी डर रहा था।
कई दिनों तक शेर रुपी नन्हा साँप भूखा ही रहा। एक दिन हिम्मत कर शेर रुपी नन्हा साँप फिर उन साधु के पास गया जिन्होंने उस नन्हे सांप को शेर बनाया था और नन्हा साँप साधु के पास जाकर जोर-जोर से रोने लगा।
साधु ने शेर रुपी नन्हे साँप से पूछा – “क्या हुआ अब क्यों रो रहे हो, अब तो तुम जंगल के राजा हो?” शेर रुपी नन्हा साँप रोते-रोते बोला – “साधु महाराज, अब क्या बताऊँ! मैं कई महीनों तक बहुत खुश था, जंगल में सब मुझसे डर रहे थे परंतु कुछ दिन पहले जंगल में एक शिकारी आ गया जिसने मुझे बहुत परेशान कर दिया है और वह शिकारी हर समय मेरा शिकार करने के लिए मेरा पीछा कर रहा है, शेर होने के कारण मेरा शरीर भी बड़ा हो गया है जिस कारण वह शिकारी मुझे देख लेता है। पहले तो मैं साँप था तो किसी भी झाड़ी में छिप जाता था पर अब बड़े आकार के कारण मैं छिप भी नहीं पा रहा हूँ और मैं कई दिनों से भूखा भी हूँ और यह सब कहते हुए शेर रुपी नन्हा साँप रोने लगा।”
साधु सब सुनकर बोले – “मैं पहले से ही जानता था लेकिन तुम्हें पहले मैंने कुछ कहा नहीं। तुम तब तक शांति से नहीं रह पाओगे जब तक तुम अपने अंदर के डर से नहीं लड़ोगे, मैं चाहे तुम्हें कुछ भी बना दूँ, तुमको खुद को जीवित रखने के लिए संघर्ष करते ही रहना होगा और खुद के अंदर के डर को स्वयं खत्म करना होगा” और साधु ने शेर रुपी उस नन्हे साँप को फिर से नन्हे साँप के वास्तविक रूप में बदल दिया।
नन्हा साँप साधु से बोला – “जी साधु महाराजा! मैं आपकी बात समझ गया हूँ और अपना सबक सीख चूका हूँ। मैं अब अपने इस साँप रुपी देह में ही संघर्ष करूँगा और अपने डर पर जरूर काबू पा लूँगा।”
साधु को धन्यवाद कह कर वह नन्हा साँप जंगल की ओर चले जाता है अब वह निडर होकर सबके साथ खेलने लगा और बिना डरे सबका सामना भी करने लगा।
कहानी से शिक्षा
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें स्वयं ही अपने अंदर के डर को जीतना चाहिए क्योंकि कोई कितनी भी हमारी सहायता करने की कोशिश कर ले वह हमारी सहायता तब तक नहीं कर सकता जब तक कि हम अपने अन्दर की परेशानी के डर को स्वयं खत्म नहीं कर लेते। यदि हम अपने डर पर समय पर जीत हासिल नहीं कर पाते तो हमारा डर ही हमारे जीवन में हमारी असफलता का कारण बन जाता है और हम अपने डर से कितना ही दूर क्यों न भाग लें हम तब तक उस पर विजय नहीं पा सकते जब तक कि हम उसका सामना नहीं कर लेते। अतः कभी अपने डर से न डरें डटकर उसका सामना करें।