सोने का पिंजरा और बोलने वाले तोते की कहानी हिंदी में :- बहुत समय पहले की बात है एक सुन्दरवन नामक राज्य था, जहाँ के राजा जय वर्धन थे जोकि बहुत पराक्रमी एवं सरल स्वभाव के व्यक्ति थे। राजा के दरबार में आठ एक जैसे दिखने वाले मंत्री थे और वह आठों मंत्री ऐसे एक समान दिखते थे कि उन आठ मंत्रियों में कोई भी भेद सम्भव नहीं था।
राजा जय वर्धन एक पशु प्रेमी व्यक्ति भी थे और यह बात हर व्यक्ति जानता था। राजा का व्यवहार लगभग सारे पड़ोसी राज्य के राजाओं से बहुत अच्छा था इसलिए राजा जय वर्धन के जन्मदिन के अवसर पर राजा जय वर्धन के पड़ोसी राज्य के राजा ने राजा जय वर्धन को एक बोलने वाला तोता उपहार में दिया।
राजा जय वर्धन बोलने वाला तोता पाकर बहुत खुश हुए और उन्होंने बोलने वाले तोते का नाम मिठू रखा। राजा जय वर्धन अपने मिठू से बहुत प्रेम करते थे इसलिए राजा जय वर्धन ने मिठू के लिए सोने का पिंजरा बनवाया।
राजा जय वर्धन का मिठू बहुत बुद्धिमान था जिस कारण राजा जय वर्धन मिठू को हर सभा का हिस्सा बनाते थे और कई बार बहुत से विषयों पर राजा जय वर्धन मिठू चर्चा भी करते थे।
राजा ने मिठू के खाने के लिए सबसे अच्छी मिर्च की व्यवस्था की और अपने मंत्रियों को मिठू की अच्छे से देखभाल करने का आदेश दिया, राजा मिठू के लिए सब सुख सुविधा का प्रबंध करना चाहते थे।
शुरुआत में मिठू भी राजा जय वर्धन से बहुत खुश रहा करता था परंतु एक दिन राजा जय वर्धन ने देखा मिठू बहुत उदास है और राजा ने अपने मंत्रिमंडल के एक मंत्री को मिठू के उदास होने का कारण पता करने का आदेश दिया।
कुछ समय बाद राजा ने अपने उस मंत्री को अपने कक्ष में बुलाने का आदेश दिया जिसे राजा जय वर्धन ने मिठू की उदासी जानने का कार्य सौंपा था। राजा जय वर्धन उस मंत्री से बोले – “मंत्री क्या तुमने मेरे मिठू के उदास होने का कारण पता लगा लिया है?”
राजा जय वर्धन का मंत्री राजा से बोला – “महाराज की जय हो! जी महाराज, मैंने मिठू के उदास रहने का कारण पता कर लिया है।” राजा जय वर्धन यह सुनकर बहुत खुश हो गए और बोले – “शाबाश! मंत्री अब जल्दी से बताओ कि मेरा मिठू क्यों दु:खी है?”
राजा जय वर्धन का मंत्री राजा से बोला – “महाराजा! मिठू रोज खुले आसमान में उड़ते पक्षियों को देखता है और शायद उन उड़ते पक्षियों को देखकर मिठू भी पिंजरे से बाहर उन पक्षियों के साथ खुले आसमान में उड़ना चाहता है परन्तु पिंजरे में होने के कारण मिठू खुले आसमान में नहीं उड़ सकता। जिस कारण मिठू उदास रहता है इसलिए महाराज आप मिठू को पिंजरे से आजाद कर दीजिए।”
राजा जय वर्धन यह सुनकर बहुत क्रोधित हो गए और बोले – “मंत्री यह तुम क्या कह रहे हो, यह असम्भव है, मिठू के लिए तो मैंने सोने का पिंजरा बनवाया है और मिठू के लिए सबसे अच्छी मिर्च की तक व्यवस्था की है तो मिठू इन सब आराम के बाद भी मेरे महल से बाहर क्यों जाना चाहेगा” और यह कहते हुए राजा जय वर्धन ने मंत्री को अपने कक्ष से बाहर भेज दिया।
बहुत समय बाद एक दिन राजा जय वर्धन किसी कार्य हेतु अपने आठों मंत्रियों के साथ पड़ोसी राज्य में गए। पड़ोसी राज्य में कार्य संपन्न होने के बाद राजा जय वर्धन और राजा के मंत्री अपने राज्य सुन्दरवन में आ गए।
कुछ समय बाद राजा जय वर्धन ने अपने आठ मंत्रियों की एक बैठक बुलवाई परन्तु आठ मंत्रियों की जगह नौ मंत्री थे। राजा जय वर्धन यह देखकर आश्चर्यचकित रह गए और बोले – “तुम में से कौन नकली मंत्री है स्वयं बता दो वरना दोषी को मृत्यु दण्ड दिया जाएगा” परन्तु सारे नौ मंत्री एक स्वर में बोलने लगे – “महाराज! मैं असली मंत्री हूँ, मैं असली मंत्री हूँ।”
राजा जय वर्धन बहुत दिन तक नकली मंत्री को पहचानने की कोशिश करते रहे परन्तु सभी का रुप रंग बिल्कुल एक-सा होने के कारण पहचानना सम्भव नहीं हो रहा था।
एक दिन राजा जय वर्धन यह सब देखकर बहुत परेशान हो गए और अपने कक्ष में चले गए। राजा जय वर्धन अपने कक्ष में जाकर मिठू से बोले – “प्रिय मिठू, मैं बहुत परेशान हूँ पड़ोसी राज्य से आने के बाद मेरे आठ मंत्रियों के स्थान में नौ मंत्री हो गए हैं क्या तुम नकली मंत्री को पहचानने के लिए कोई युक्ति बता सकते हो?”
मिठू बोला – “जी महाराज, मैं नकली मंत्री की पहचान कर सकता हूँ परन्तु इसके बाद आपको मेरी एक इच्छा पूरी करनी होगी।”
राजा जय वर्धन मुसकुराते हुए बोले – “हाँ मिठू, जो तुम चाहोगे वही तुमको मिलेगा।” फिर मिठू राजा जय वर्धन से बोला – “महाराज आप अभी अपने सबसे अच्छे तलवार बाज को और नौ मंत्रियों को दरबार में बुला लिजिए।”
राजा जय वर्धन ने उसी समय सभा में सबको बुला लिया। सभा में राजा का सबसे अच्छा तलवार बाज और नौ मंत्री आ गए और राजा ने सारे नौ मंत्रियों को एक कतार में खड़ा कर दिया और बोले – “अभी भी नकली मंत्री स्वयं बाहर आ जाओ वरना अगर मिठू ने पहचान कर ली तो फिर दोषी को केवल मृत्यु दण्ड दिया जाएगा।” परंतु सभी नौ मंत्री बोले – “हम असली हैं।”
यह सुनकर कुछ देर बाद राजा जय वर्धन मिठू से बोले – “मिठू अब तुम ही पहचान करो।” फिर मिठू ने राजा जय वर्धन के सबसे अच्छे तलवार बाज से कहा – “आप आज इन सारे मंत्रियों का बाएँ हाथ का अंगूठा वैसे ही काट दीजिये जैसे आपने पहले दाएं का काटा था।
यह सुनकर असली आठ मंत्रियों में से कोई कुछ नहीं बोला क्योंकि वह जानते थे कि उनका कभी कोई अंगूठा नहीं कटा है लेकिन नौ मंत्रियों में से नकली मंत्री रोने लगा और बोला – “महाराज! मुझे माफ कर दीजिए, मेरा अंगूठा मत काटिए, मैं धन के लालच में आ गया था इसलिए मैं पड़ोसी राज्य से आपके मंत्रियों में शामिल हो गया था और मैंने बहुत सारा धन लेकर भागने की योजना बनाई थी”
राजा जय वर्धन ने उस नकली मंत्री माफ नहीं किया और नकली मंत्री को मृत्युदंड की सज़ा सुनाई। फिर राजा जय वर्धन मिठू से बोले – “आज मिठू तुमने अपनी बुद्धिमानी का परिचय दिया है। मैं तुमसे बहुत खुश हूँ, मिठू बताओ तुम्हारी क्या इच्छा है?”
मिठू राजा जय वर्धन से बोला – “महाराज मुझे इस पिंजरे से बाहर निकाल दीजिए मैं भी सभी पक्षियों की तरह स्वतंत्र रहकर ऊँचे खुले आसमान में उड़ना चाहता हूँ।”
राजा जय वर्धन मिठू को स्वयं से दूर नहीं करना चाहते थे परन्तु राजा मिठू की बातों से समझ गए कि मिठू को सोने का पिंजरा वह खुशी नहीं दे सकता, जो खुला आसमान दे सकता है इसलिए राजा जय वर्धन ने मिठू को आजाद कर दिया और मिठू ऊँचे खुले आसमान में उड़ गया।
कहानी से शिक्षा
हमें इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि प्रेम करना स्वाभाविक बात है जोकि अच्छा है परंतु प्रेम में भी किसी की स्वतंत्रता को छीन लेना गलत है क्योंकि प्रेम के पिंजरे में कैद होकर किसी को प्रेम की अनुभूति होना भी असंभव है। राजा के तोते के पिंजरे में कैद होकर सारी सुख सुविधाओं के बाद भी प्रेम और आनंद की अनुभूति नहीं मिली जो उसे आजाद होकर खुले आसमान में मिली अतः आप जिससे प्रेम करते हैं उसे आजाद छोड़ दें।