हकलाने का मनोवैज्ञानिक कारण और उपाय ( haklane ka manovaigyanik karan aur upay ) : हकलाना आमतौर पर बचपन में उत्पन्न होने वाली सामान्य भाषण समस्या हैं, जिसमें बोलने पर कठिनाई होती है। हकलाना हमारे बोलने में बाधा डालता है। हकलाने की समस्या बच्चों को ही नहीं वयस्कों को भी प्रभावित कर सकती है। विश्व की करीब एक फीसदी आबादी हकलाती है, जिसमें महिलाओं के मुकाबले चार गुना पुरुषों में हकलाने की समस्या ज्यादा पाई जाती है।
अमेरिका जैसे विकसित देश में भी आज तक हकलाने की समस्या का कोई सार्वभौमिक इलाज नहीं है। शोध से पता चलता है कि हकलाने वाले 65 फीसदी छोटे बच्चे अपने आप लगभग दो सालों में ठीक हो जाते हैं। लेकिन अगर यह समस्या वयस्कों में पैदा हो तो इसका कोई इलाज अभी तक सम्भव नहीं है।
विशेषज्ञों के अनुसार, हकलाने के कई कारण हो सकते हैं जैसे मनोवैज्ञानिक, न्यूरोलॉजिकल, पर्यावरणीय, आनुवंशिक और विकासात्मक आदि। जिसके कई लक्षण देखने को मिलते हैं जैसे एक ही शब्द को बार-बार दोहराना, कुछ शब्दों को लम्बा खींचना, बोलने में अटकना या बोलने में रुकावट, चेहरे की मांसपेशियों का हिलना और आंखों का तेजी से झपकना हकलाने के संकेत है। आइए विस्तार में जाने हमारे इस आर्टिकल से हकलाने का मनोवैज्ञानिक कारण और उपाय के बारे में।
हकलाने का मनोवैज्ञानिक कारण (Psychogenic factors)
बिना हकलाए बोलने में विश्वास खो देना एक मनोवैज्ञानिक कारण है। अन्य मनोवैज्ञानिक कारणों में तनाव, घृणा, आत्मविश्वास में कमी, शर्मिंदगी और चिंता इत्यादि को शामिल किया जा सकता है। आजकल स्पीच थेरेपी की मदद से या कई दूसरे तरीकों से हकलाने का इलाज किया जा रहा है।
हकलाने के अन्य कारण
हकलाने के न्यूरोजेनिक कारक (Neurogenic factor)
तंत्रिका तंत्र से जुड़ी कुछ समस्याएं हकलाने का कारण बन सकती हैं जैसे स्ट्रोक, ट्यूमर, इस्कीमिक अटैक, पार्किंसंस रोग (नर्वस सिस्टम से जुड़ी एक बीमारी) और मैनिंजाइटिस यानी दिमागी बुखार या मस्तिष्क ज्वर के रूप भी जाना जाता है। इन सब कारणों से हकलाने की समस्या पैदा हो सकती है। इसके अलावा विशेषज्ञों के अनुसार, दिमाग के स्पीच प्रोडक्शन केंद्र में खून के कम प्रवाह के कारण ही लोगों में हकलाने की परेशानी पैदा होती है।
हकलाने का आनुवांशिक कारण (genetic cause )
कुछ मामलों में हकलाना एक आनुवांशिक समस्या हो सकती है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी चल सकती है। यानी परिवार के किसी करीबी सदस्य को हकलाने की समस्या होती है तो यह बच्चों में भी आ सकती है।
हकलाने के विकासात्मक कारण (Developmental causes)
बचपन के दौरान विकास में देरी या विकास से जुड़ी अन्य समस्याएं भी हकलाने का कारण बन सकती हैं। विकास सम्बन्धी हकलाना लगभग 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में विशेष रूप से लड़कों में सबसे आम है। इस प्रकार के हकलाने की समस्या उस समय उत्पन्न होती है, जब बच्चे अपनी भाषा में बोलने की कोशिश करते हैं। इस प्रकार का हकलाना बिना उपचार के ही ठीक हो जाता है।
हकलाने के लक्षण (symptoms of stuttering in hindi)
- किसी शब्द या वाक्य को बोलने में समस्या होना।
- हकलाने से पीड़ित व्यक्ति कुछ-कुछ शब्दों को लम्बा खींचता है जैसे यह चित्र सुं..सुं..सुं..सुं..सुंदर है।
- कुछ शब्दों को बोलने से पहले हिचकिचाहट महसूस करना और अपनी बात को तेज़ गति में बोल देना।
- एक ही शब्द या ध्वनि को बार-बार दोहराते हुए बात करना जैसे “आज … आज … आज मैं जा रहा हूँ।”
- चेहरे की मांसपेशियों का हिलना और आंखों का तेजी से झपकना हकलाने का एक लक्षण है।
- हकलाने पर सांस लेना अनियमित हो जाता है, या तो व्यक्ति अपनी सांस रोक कर रखता है या एक गहरी सांस लेता है।
हकलाने की रोकथाम और बचाव के लिए इन विशेष बातों का ध्यान दें –
- माता-पिता को अपने बच्चों से प्रसन्न स्वर में धीरे-धीरे और स्पष्ट रूप से बात करनी चाहिए।
- हकलाने की समस्या से बचने के लिए धीरे-धीरे बोलना चाहिए।
- जिस शब्द या वाक्य को बोलने पर कठिनाई होती हैं, उन शब्द को बार बार दोहराएं।
- जब बच्चे बात कर रहे हों, तो उन्हें बीच में न टोके, उन्हें बोलने का अच्छे से समय दें।
- एक खुशहाल और तनाव मुक्त पारिवारिक माहौल बनाए रखें और तनाव को कम करें।
- बोलते समय गहरी सांस लें और बातचीत करने के लिए छोटे वाक्यों का प्रयोग करें।
- अभ्यास, दर्पण के सामने खड़े होकर करें या किसी समर्थन देने वाले व्यक्ति के साथ करें ।
- बात करते समय हर व्यक्ति को आंखों का संपर्क बनाना चाहिए।
हकलाना बंद करने के घरेलू उपाय
- रोजाना एक आंवले का सेवन, बच्चों में हकलाने की समस्या को दूर कर सकता है।
- हरा धनिया और अमलतास के गूदे को पानी में पीस कर, उसी पानी से 21 दिन तक लगातार कुल्ले करने से जीभ पतली हो जाती है और हकलाने की समस्या दूर हो जाती है।
- सुबह मक्खन में काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर खाने से कुछ ही दिनों में हकलाने की समस्या दूर हो जाती है।
- गाय घी का सेवन, हकलाने की समस्या को जल्द ही ठीक करने में मदद करता है।
- भीगी हुई बादाम को सुबह मक्खन के साथ खाएं, इससे थोड़े ही दिनों में हकलाने की समस्या दूर हो जाएगी।
- गुनगुने ब्राह्मी ऑयल से सिर पर 30 से 40 मिनट तक मालिश करें। उसके बाद गुनगुने पानी से नहा लें। इससे हकलाने की समस्या काफी हद तक ठीक हो जाती है।
हकलाने का योग और एक्सरसाइज (Stammering cure exercise)
व्यायाम हकलाने की समस्या को तीव्रता से कम करने में सहायक होता है। हकलाने को कम करने के लिए, हकलाने वाले व्यक्ति को सोने से पहले रात में एकांत जगह पर विशिष्ट व्यायाम करने की सलाह दी जाती है, जो कि निम्न हैं –
व्यायाम 1
हकलाने वाले व्यक्ति को एकांत में जोर-ज़ोर से स्वर (ए, ई, आई, ओ और यू) का उच्चारण स्पष्ट रूप से करना चाहिए। हर बार स्वरों का उच्चारण करते समय विभिन्न तरीकों से बोलने का प्रयास करना चाहिए।
व्यायाम 2
हकलाने के इस व्यायाम को बिना किसी दर्द व समस्या के जितना हो सके अपने मुंह को खोले और फिर जीभ की नोक से मुंह के ऊपरी भाग को छूने के लिए जीभ को ऊपर की ओर उठाएं और जीभ की नोक को पीछे की ओर खींचें। इसके बाद अपनी जीभ को मुंह के बाहर निकालकर ठुड्डी को छूने का प्रयास करें। फिर कुछ सेकंड बाद अपनी सामान्य स्थिति में आ जाएं। इस अभ्यास को 4-5 बार दोहराएं।
व्यायाम 3
श्वास व्यायाम हकलाने से जुड़े भाषण विकारों को ठीक करने में बहुत प्रभावशाली होता है, क्योंकि इस व्यायाम के द्वारा श्वसन अंगों को मजबूत करने और न्यूरोमस्कुलर तनाव को शांत करने में मदद मिलती है। इस व्यायाम को कई तरीके से किया जा सकता है।
- श्वास के माध्यम से गहरी सांस ले और फिर धीरे-धीरे सांस छोड़े।
- मुंह के माध्यम से गहरी श्वास लेकर, जीभ को मुंह के बाहर खींचते हुए सांस छोड़े।
- छाती की मांसपेशियों को अंदर की ओर दबाते हुए मुंह के माध्यम से गहराई से सांस लें और फिर धीरे-धीरे सांस छोड़ें।
व्यायाम 4
इस व्यायाम में तेजी से किसी भी बुक को पढ़ना शामिल है। तेजी से बुक पढ़ना, बोलने में होने वाली बाधाओं को कम करने में सहायक होता है । इस अभ्यास के लिए आप एक कोई भी बुक लें और भाषण की गुणवत्ता पर जोर दिए बिना बुक को बिना रुके तेजी से पढ़ने की कोशिश करें। शब्दों को गलत तरीके से बोलने पर ध्यान न दें और पढ़ते जाएं। इस अभ्यास को 2-3 महीने तक जारी रखें। इस व्यायाम करने से मांसपेशियों में तनाव को कम होगा और भाषण की सभी बाधाओं को दूर करने में मदद मिलेगी।
हकलाने का उपचार (Stammering treatment)
हकलाने वाले बच्चों और वयस्कों के इलाज के लिए कई अलग-अलग उपचार व तरीके उपलब्ध हैं । यद्दपि उपचार हकलाने के सभी प्रकार को खत्म नहीं कर सकता है, लेकिन यह नियमित भाषण-भाषा संचार को सिखाने में मदद कर सकता है। लेकिन सभी बच्चों को सामान्यतः उपचार की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि विकासात्मक हकलाना आमतौर पर समय के साथ ठीक हो जाता है। हकलाने का इलाज करने के लिए डॉक्टर से संपर्क कर, एक सर्वोत्तम उपचार का चुनाव किया जा सकता है।
स्पीच थेरेपी (Speech therapy)
स्पीच थेरेपी हकलाने की स्थिति में भाषण में रुकावट को कम कर सकती है और बच्चों व वयस्कों के आत्म-सम्मान में सुधार कर सकती है। स्पीच थेरेपी भाषण की दर पर ध्यान रखने के लिए प्रोत्साहित करती है और भाषण पैटर्न को नियंत्रित करने पर ज़ोर देती है। स्पीच थेरेपी मुख्य रूप से हकलाने का अनुवांशिक कारण वाले व्यक्ति के लिए ज्यादा फायदेमंद होती है।
इलेक्ट्रॉनिक प्रवाह उपकरण (Electronic fluency devices)
इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का इस्तेमाल हकलाने के इलाज में किया जा सकता है। कुछ रोगी इस प्रकार के उपचार के लिए अच्छी प्रतिक्रिया देते हैं। जो व्यक्ति अधिक तेजी से बोलते है और हकलाते है, उनके लिए यह प्रक्रिया काफी प्रभावशाली है। इस प्रक्रिया में इलेक्ट्रॉनिक उपकरण का उपयोग कर प्रतिध्वनि को उत्पन्न किया जाता है यानी बच्चा माइक्रोफोन में बोलता है और थोड़ी देरी में हेडफोन के माध्यम से अपने ही द्वारा बोली गयी आवाज को सुनता है। जिससे रोगी को लगे कि वह किसी और के साथ बात कर रहा है। इसमें परिवर्तित ध्वनि प्रतिक्रिया प्रभाव का उपयोग कर हकलाने वाले व्यक्ति को धीरे-धीरे बोलने और हकलाना कम करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
संज्ञानात्मक व्यवहारवादी थेरेपी (Cognitive behavioral therapy)
इस प्रकार की मनोचिकित्सा सोचने के तरीकों को पहचानने और उन्हें बदलने में रोगी की मदद कर सकती है। यह थेरेपी तनाव, चिंता या हकलाने से संबंधित आत्म-सम्मान की समस्याओं को हल करने में भी मदद कर सकती है। अगर हकलाना शारीरिक चोटों के कारण है तो यह थेरेपी ज्यादा मदद नहीं करती है।
आवश्यक सूचना
बच्चों को हकलाने की समस्या से मुक्त करने में उनके माता-पिता की अहम भूमिका होती है। यद्यपि हकलाने की समस्या का निवारण करने के लिए कोई भी प्रभावी दवा नहीं है क्योंकि हकलाने का उपचार, थेरेपी पर आधारित है तथा इसमें किसी भी प्रकार की दवा शामिल नहीं की जाती है, इसलिए इन उपचार प्रक्रिया के कोई संभावित दुष्प्रभाव नहीं हैं। लेकिन यदि मनोवैज्ञानिक चिकित्सा लंबे समय तक उचित परिणाम प्रदान नहीं करती है तो यह मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।
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