बिच्छू का डंक और साधु की सहनशीलता की कहानी हिंदी में – बहुत समय पहले की बात है एक बहुत बड़ा जंगल था और उस जंगल में एक विश्वकर्मा नाम के साधु रहते थे। जंगल में साधु विश्वकर्मा की कुटिया थी जिसमें साधु विश्वकर्मा कई सालों से तप कर रहे थे जिसमें साधु विश्वकर्मा भगवान शिव की आराधना करते थे।
साधु विश्वकर्मा स्वभाव के बहुत दया भाव वाले व्यक्ति थे परन्तु साधु विश्वकर्मा को क्रोध जल्दी आ जाता था। एक दिन साधु विश्वकर्मा अपनी कुटिया में तपस्या कर रहे थे तब साधु विश्वकर्मा को शिव जी के दर्शन हुए और शिव जी साधु विश्वकर्मा से बोले – वत्स तुम इस जंगल से दूर काशी नाम का एक गाँव है, उस गाँव की यात्रा पर जाओ तुम्हें ज्ञान की प्राप्ति होगी और शिव जी अंतर्ध्यान हो गए।
अगली सुबह साधु विश्वकर्मा भगवान शिव जी की आज्ञा के अनुसार काशी गाँव की यात्रा पर चल दिए। काशी गाँव जंगल से बहुत दूर था जिस कारण साधु विश्वकर्मा को बहुत दिनों तक चलना पड़ा।
कुछ दिन बाद साधु विश्वकर्मा काशी गाँव पहुँच गए और साधु काशी गाँव को देखकर बहुत खुश हुए क्योंकि काशी गाँव के नाम में जितनी सुन्दरता थी उससे भी ज्यादा काशी गाँव में थी।
काशी गाँव के आरंभ होते ही साधु विश्वकर्मा ने देखा की गाँव में सुन्दर बागान थे और काशी गाँव में बहुत बड़ी झील भी थी।
साधु विश्वकर्मा अब गाँव का दौरा करने गए तो साधु ने देखा काशी गाँव में सभी लोगों के बहुत सुन्दर घर हैं परन्तु एक घर सबसे सुन्दर है और उस सुन्दर घर के आँगन में बहुत सारे अलग-अलग प्रकार के सुन्दर फूल खिले हैं जो बहुत ही आकर्षित लग रहे हैं और घर की शोभा बढ़ा रहे हैं।
फिर साधु विश्वकर्मा वहाँ से आगे की तरफ चले गए और एक पेड़ के नीचे बैठ गए। साधु विश्वकर्मा पहले जंगल में रहते थे और जंगल के फल खाते थे परन्तु अब साधु विश्वकर्मा काशी गाँव में आ गए थे इसलिए साधु विश्वकर्मा कुछ देर में भिक्षा माँगने के लिए चले गए।
अब साधु विश्वकर्मा हर दिन शाम को भिक्षा मांगने के लिए जाते। धीरे-धीरे काशी गाँव के सभी लोग साधु विश्वकर्मा के ज्ञान से परिचित हो गए थे जिस कारण गाँव के लोग कोई भी कार्य करने से पहले साधु विश्वकर्मा से आज्ञा लेने लगे।
एक दिन साधु विश्वकर्मा ने आज सफेद फूलों से शिव जी की आराधना करने का सोचा और सफेद फूल केवल काशी गाँव के सबसे सुन्दर घर के आँगन में थे तो साधु विश्वकर्मा ने सोचा आज मैं काशी गाँव के सबसे सुन्दर घर में जाता हूँ और उस घर से कुछ सुन्दर फूल ले आता हूँ जिनसे में भगवान शिव की आराधना करूँगा जिससे वह और अधिक प्रसन्न हो जायेंगे।
कुछ देर बाद साधु विश्वकर्मा गाँव के सबसे सुन्दर घर में पहुंचे और साधु ने कहा “अलख निरंजन” जिसे सुनकर घर में से एक छोटी सी बच्ची और बच्ची के पिता घर से बाहर आये।
छोटी बच्ची ने साधु विश्वकर्मा को भिक्षा दी और साधु ने छोटी बच्ची को आशीर्वाद दिया। फिर साधु विश्वकर्मा ने छोटी बच्ची के पिता से घर के आँगन में उगे हुए सफेद रंग के कुछ फूल माँगे।
छोटी बच्ची के पिता को पता था कि शिव जी को चढ़ने वाले सफेद रंग के फूल केवल इसी आँगन में मिलते हैं जिस कारण छोटी बच्ची के पिता ने अपने अभिमान में साधु विश्वकर्मा का अपमान कर दिया और कहा – हमने ये फूल किसी साधु के लिए नहीं लगाए हैं तुम्हें भिक्षा दे दी है और इतना ही तुम्हारे लिए बहुत है अब आप यहाँ से चले जाओ, अगर हम ऐसे ही लोगों को फूल बांटते रहेंगे तो यहाँ एक भी फूल नहीं बचेगा।
साधु विश्वकर्मा छोटी बच्ची के पिता के इस कठोर व्यवहार से बहुत क्रोधित हो गए और साधु ने छोटी बच्ची के पिता को कहा – जिन फूलों के लिए आज तूने मेरा अपमान किया है उन फूलों का जल्द ही विनाश हो जाएगा और साधु विश्वकर्मा गुस्से में काशी गाँव ही छोड़कर चले गए।
उस दिन से साधु विश्वकर्मा का क्रोध बहुत बड़ गया और अब साधु विश्वकर्मा हर किसी पर जल्दी क्रोधित हो जाते और साधु में पहले जैसा दया भाव भी नहीं रहा, उन्होंने दूसरों की सहायता करना भी छोड़ दिया।
एक दिन साधु नदी के पास से किसी गाँव की तरफ जा रहे थे तब साधु ने देखा की एक गड्डे में एक बिच्छू गिरा हुआ और मिट्टी चिकनी होने की वजह से वो कई कोशिशों के बाद भी बाहर नहीं निकल पा रहा है। साधु विश्वकर्मा ने उस बिच्छू को उस गड्डे से बाहर निकालने के लिए जैसे ही उस बिच्छू को अपने हाथ में लिया, उस बिच्छू ने डंक मार दिया और साधु विश्वकर्मा के हाथ से बिच्छू फिर गड्डे में गिर गया।
साधु विश्वकर्मा ने सोचा उस बिच्छू ने खुद को संभालने में गलती से मुझे डंक मार दिया होगा और फिर जल्दी से साधु ने दोबारा उस बिच्छू को अपने हाथ से गड्डे में से निकाला ही था कि इस बार फिर से बिच्छू ने साधु विश्वकर्मा को काट लिया।
साधु विश्वकर्मा अब बिच्छू को देखकर बहुत क्रोधित हो गए और बोले – तेरी प्रवृति काटने की है यह जानते हुए भी मैंने तुझे बचाया और तू मुझे ही बार-बार डंक मार रहा है और गुस्से में साधु विश्वकर्मा, उस बिच्छू को नदी में फेंकने के लिए नदी के पास चले गए।
और जैसे ही साधु विश्वकर्मा बिच्छू को नदी में फेंकने ही वाले थे कि उसी समय भगवान शिव जी प्रकट हो गए और शिव जी बोले – वत्स रुको! तुम यह क्या कर रहे हो? जिसने तुम्हें ज्ञान दिया तुम उसे ही क्रोध में नदी में फेंक रहे हो।
यह सुनकर साधु विश्वकर्मा शिव जी से बोले – हे भगवन प्रणाम! यह आप क्या कह रहे हैं? इस बिच्छू ने तो मुझे डंक मारा है! इस बिच्छू ने तो मुझे तो कुछ नहीं सिखाया है।
शिव जी साधु विश्वकर्मा से बोले – वत्स इस बिच्छू की प्रवृति ही डंक मारना है और इस बिच्छू ने तुम्हें डंक मारकर अपनी प्रवृति के अनुरूप ही कार्य किया है। जब यह निर्बोध और मूक बिच्छू अपनी प्रवृति नहीं बदल सकता तो फिर तुमने कैसे अपनी प्रवृति बदल दी? तुमने एक साधु की सहनशीलता और सहिष्णुता कैसे त्याग दी ?
वत्स केवल काशी के उस एक घर में अपमान होने से तुमने अपनी दया की प्रवृति कैसे बदल दी और जिन फूलों के लिए उस छोटी बच्ची के पिता ने तुम्हारा अपमान किया था वह बाग तो मौसम बदलते ही नष्ट हो गया था और गाँव वालों को जब यह पता चला कि उस बच्ची के पिता ने तुम्हारा अपमान किया है तो गाँव वालों ने उस बच्ची के पिता को गाँव से बाहर निकाल दिया और उस बच्ची के पिता को तुम्हारे अपमान की सजा मिल गई।
यह सब सुनकर साधु विश्वकर्मा को अपनी गलती का अहसास हुआ और साधु ने शिव जी से क्षमा माँगी और उस बिच्छू को जमीन पर छोड़ दिया।
कहानी से शिक्षा
हमें इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी दूसरों के कारण अपना व्यवहार नहीं बदलना चाहिए क्योंकि हमारा व्यवहार ही हमारा व्यक्तित्व बताता है। इस कहानी से हमें यह भी शिक्षा मिलती है कि यदि कोई किसी का अपमान करता है तो उसे दूसरे के अपमान करने की सजा अवश्य मिलती है।