मोहन की समझदारी और रेगिस्तान के नरभक्षी की कहानी हिंदी में :- बहुत पुरानी बात है एक माधोपुर नामक छोटा सा गांव था वहां बहुत कम लोग रहा करते थे और वहां के लोग बहुत कर्मठ थे। माधोपुर के लोग बहुत से उपयोगी सामान बनाना जानते थे। माधोपुर में कोई बड़ा बाजार नहीं था इसलिए वहां के लोगों को अपने जरूरत का सामान लेने और बचने के लिए दूसरे राज्य में जाना पड़ता था। माधोपुर के लोग खेती, पशुपालन एवं जरूरत की वस्तुएँ जैसे धातु और मिट्टी के बर्तन, खेती के लिए छोटे औजार, टोकरियाँ, डाले, सूप, कंडी आदि बनाया करते थे।
माधोपुर में दो बहुत अच्छे दोस्त भी रहते थे एक दोस्त का नाम मोहन और दूसरे दोस्त का नाम सोहन था। मोहन और सोहन बचपन से ही साथ रहा करते थे और हमेशा एक साथ ही दूसरे राज्य में समान खरीदने और बेचने जाया करते थे।
मोहन और सोहन में से मोहन उदार, व्यवहार कुशल एवं समझदार था और सोहन थोड़ा नासमझ एवं बहुत लालची था। मोहन का सबसे अच्छा दोस्त होने पर भी जब मोहन का सामान ज्यादा बिक जाता, सोहन बहुत चिड़ जाता और मन ही मन मोहन से गुस्सा रहता जबकि मोहन अधिक बिक्री होने पर सोहन को हमेशा कोई न कोई तोहफा जरूर देता।
एक दिन मोहन और सोहन अपना सामान बेचने के लिए दूसरे राज्य के बाजार में गए, मोहन के पास सोहन से ज्यादा सामान था। सोहन और मोहन जब जा रहे थे तब सोहन बोला – “मोहन तुम्हारे पास तो बहुत सारा सामान है, तुम्हें लगता है तुम्हारा सारा सामान बिक जाएगा ? कहीं तुम्हें निराश होकर ही न लौटना पड़े।”
मोहन मुस्कुराकर बोला – “सोहन जितना भी सामान बिकेगा मुझे कोई परेशानी नहीं है, बस मेरे दो रोटी के लिए मैं धन अर्जित कर लूँ मेरे लिए वही काफी है।”
सोहन यह सुनकर और चिड़ गया कि मोहन इतना शांत कैसे है कुछ देर बाद मोहन और सोहन दूसरे राज्य के बाजार में पहुँच गए। मोहन सब ग्राहकों से अच्छे से व्यवहार करता था और जरूरतमंदों को कम रुपयों में ही अपना सामान बेच दिया करता था, लेकिन सोहन बहुत घमंड और बेकार तरीके से ग्राहकों से बात किया करता था और अपना सामान बहुत महंगे दामों में बेचता था।
मोहन एवं सोहन बहुत समय से उस बाजार में जा रहे थे इसलिए सभी लोग मोहन और सोहन के व्यवहार से अच्छे से वाकिफ थे, मोहन एवं सोहन ने बाजार में अपना सामान बेचना शुरू किया, पहले तो सोहन का बहुत सामान बिक गया और मोहन का सामान सोहन से कम बिकता देखकर, सोहन बहुत खुश हो गया।
सोहन बोला – “शाम होते-होते मेरा तो सारा सामान बिक जाएगा और मोहन तुम्हारा तो थोड़ा ही सामान बिकेगा” लेकिन धीरे धीरे मोहन का सामान सोहन से ज्यादा बिकने लगा क्योंकि मोहन जिनके पास कम रुपये थे उनको कम दामों में ही अपना सामान बेच रहा था।
सोहन ज्यादा सामान बिकने के घमंड में बिल्कुल भी किसी चीज़ का दाम कम नहीं कर रहा था इसलिए लोगों ने सोहन से सामान लेना छोड़ मोहन से लेना शुरू कर दिया शाम होते-होते, मोहन का सारा सामान बिक गया और सोहन का सिर्फ आधा सामान ही बिका।
सोहन यह देखकर बहुत चिड़ गया और बोला – “मोहन ये कैसे संभव है! तुम्हारा सामान मुझसे ज्यादा था और दोपहर तक बहुत कम बिका था, अचानक सब बिक गया जबकि मेरा सामान तुमसे ज्यादा बिक रहा था, मोहन तुमने ग्राहकों को क्या पट्टी पढ़ाई है ? क्या तुमने उन लोगों को मुझसे सामान ना लेने के लिए कहा है?”
मोहन बोलता है – “नहीं सोहन मैं ऐसा क्यों करूँगा ? तुम मेरे दोस्त हो, बस तुम लोगों को कम दाम में सामान नहीं बेचते हो और मैं जरूरत के हिसाब से कम दामों में जरूरतमंद लोगों को सामान दे देता हूँ इसलिए वे सब लोग मुझसे सामान लेना पसंद करते हैं।”
यह सुनकर सोहन बहुत चिड़ गया और मोहन और सोहन दोनों अपने राज्य की तरफ वापस चल दिए, पूरे रास्ते भर सोहन, मोहन से बिल्कुल भी नहीं बोला जबकि मोहन ने अपनी अधिक बिक्री होने पर सोहन के लिए फिर एक तोहफा लिया और सोहन को दिया लेकिन सोहन ने वह तोहफा फेंक दिया। इसके बाद बहुत दिनों तक सोहन, मोहन से मिलने ही नहीं आया।
एक दिन सोहन और मोहन मिले, सोहन मन ही मन मोहन से बहुत चिड़ा हुआ था और मोहन को नीचा दिखाना चाहता था, इसलिए सोहन ने एक योजना बनाई और मोहन से कहा – “हम आसपास के राज्यों में तो सामान बेचने जाते ही हैं, लेकिन इससे बड़ा एक बाजार रेगिस्तान के दूसरी तरफ पड़ता है चलो इस बार वहाँ जाकर देखते हैं, किसका सामान ज्यादा बिकता है यहाँ तो सब तुम्हें जानते हैं इसलिए तुमसे ज्यादा सामान खरीदते हैं लेकिन रेगिस्तान के पार वाले बाजार में हमें कोई नहीं जानता, तब पता चलेगा किसका सामान ज्यादा बिकता है।”
मोहन ने बहुत शांत स्वभाव में जवाब दिया – “सोहन मेरी तुमसे कोई सामान बेचने की प्रतिस्पर्धा नहीं है कि मैं और तुम रेगिस्तान को पार कर इतनी दूर बाजार में जाए क्योंकि रेगिस्तान को पार करना इतना भी आसान नहीं है।”
यह सुनकर सोहन बोला – “यह तो सिर्फ बहाना है तुम भी जानते हो कि तुम से ज्यादा सामान मैं बेच सकता हूँ इसलिए तुम डर रहे हो और तुम बहाने बना रहे हो। सोहन जिद करने लगा की रेगिस्तान को पार करके हम बड़े बाजार में जाएंगे।”
अंततः मोहन ने सोहन बात मान ली। रेगिस्तान बहुत दूर था और बड़े बाजार में सामान भी ज्यादा ले जाना था इसलिए मोहन और सोहन को अपने अन्य दोस्तों की सहायता लेनी पड़ी। सोहन एवं मोहन ने अपने – अपने साथियों के साथ मिलकर रेगिस्तान को पार करने की योजना बनाई।
कुछ समय बाद मोहन और सोहन अपने साथियों से मिले और योजना पर चर्चा करने लगे उनमें से एक ने बोला हम सबके पास अधिक सामान है तो हमें अपना सामान जानवरों पर लादकर ले जाना पड़ेगा और जिस रास्ते से हमें जाना है वहाँ से केवल एक बार में एक ही टोली जा सकती है तो सोहन और मोहन आप लोग आपस में बात कर लो कि किसकी टोली पहले जाएगी।
सोहन ने यह सुनकर अपने साथी से कहा कि पहले मैं, मेरी टोली को ले जाता हूँ जिससे मेरे जानवरों को बहुत सारी नई घासें खाने को मिलेंगी और मोहन के जानवरों के लिए बस बची कूची घास ही होगी और मैं पहले रेगिस्तान को पार करूँगा तो पहले ही बाजार पहुँच जाऊँगा और मोहन के आने से पहले ही अपना सारा सामान बेच दूंगा। साथ ही मेरी बाजार में अच्छी पहचान भी हो जाएगी और फिर सब लोग सिर्फ मेरा ही सामान खरीदेंगे और मोहन बाद में पहुंचेगा भी तो लोग उसका सामान मुझसे ज्यादा नहीं खरीदेंगे।
कुछ देर में सोहन बोला – “सबसे पहले मैं ही जाऊंगा”
मोहन ने कहा – “ठीक है जैसा तुमको सही लगे।”
कुछ समय बाद सोहन अपने साथियों के साथ उस रेगिस्तान के पार वाली बाजार जाने के लिए चल पड़ा सोहन के पास भी बहुत सारा सामान था रेगिस्तान पहुँचने से पहले सोहन के मार्ग में एक छोटा सा गाँव पड़ा।
गाँव के लोगों ने सोहन को बताया कि आगे पानी का कोई भी स्रोत नहीं है यह बहुत खतरनाक रेगिस्तान है यहाँ नरभक्षी लोग रहते हैं जो रात में लोगों को खा लेते हैं। यह सुनकर सोहन और उसके साथी डर गए परन्तु सोहन और उसके साथियों के पास बहुत सारा सामान था और इतनी दूर आकर वापस खाली हाथ जाना सोहन को अपनी हार लग रहा था इसलिए सोहन ने अपने साथियों को कहा कि आप लोग चिंता न करें, मैं आप सबकी रक्षा करूँगा और हम लोग अच्छे से इस रेगिस्तान को पार कर लेंगे और हमें बहुत धन लाभ भी होगा।
सोहन और उसके साथी रेगिस्तान की तरफ बढ़ गए, आधे रेगिस्तान को पार करने के बाद कुछ दूरी पर सोहन और उसके साथियों को कुछ लोग मिले, उनमें से एक व्यक्ति बोला – “आप लोग कहाँ जा रहे हैं ?”
तब सोहन ने कहा – “हम लोग रेगिस्तान के पार बड़े बाजार में जा रहे हैं” तो वह व्यक्ति बोला कि इतनी दूर से इतना सारा पानी लेकर क्यों आ रहे हो, आगे तो बहुत बड़ी पानी की एक झील है ऐसे तो आपके जानवर थक जाएंगे और बीमार हो जायेंगे। बेचारे जानवरों पर इतना अत्याचार क्यों कर रहे है?” यह कहकर वह लोग चले गए।
सोहन को लगा कि शायद उसने अपने जानवरों पर बहुत अत्याचार कर दिया है। यह सोच सोहन ने सारा पानी खाली करने के लिए बोल दिया। इस पर सोहन के साथियों में से एक साथी बोला – “यह क्या कह रहे हो, रेगिस्तान में पानी की झील तो संभव ही नहीं है शायद यह वही नरभक्षी लोग हैं जो हमारा पानी खत्म होने पर हमारे कमजोर होने का इंतजार करेंगे और हमको रात में खा लेंगे, आप ऐसा ना करें।”
परंतु सोहन ने बात नहीं मानी और पानी खाली करवा दिया। सोहन और उसके साथी अब बिन पानी के रेगिस्तान में यात्रा कर रहे थे जैसे ही टोली के सब लोग कुछ दूर पहुंचे सबको प्यास लगने लगी और सब लोग सोहन से पानी के लिए कहने लगे।”
सोहन ने बोला “शायद थोड़ी ही दूरी पर पानी की झील होगी, जहाँ हमें पानी मिल जायेगा।”
परंतु वह चलते रहे और रात हो गई पर कहीं भी पानी की झील ना मिली। पानी की कमी होने के कारण उनके जानवर और टोली के सारे लोग बहुत कमजोर और बदहवास हो गए, जिसका फायदा उठाकर रात होने पर नरभक्षी लोग आए और टोली के सब लोगों को खा गए।
कुछ महीनों बाद जब मोहन और उसके साथी रेगिस्तान की तरफ आ रहे थे तब मोहन और उसके साथी रेगिस्तान से पहले पड़ने वाले गाँव में पहुँचे, मोहन और उसके साथियों को गाँव के लोगों ने मोहन की टोली को भी बताया कि यह रेगिस्तान बहुत खतरनाक है, यहाँ पानी की कोई भी गुंजाइश नहीं है और यहाँ नरभक्षी लोग भी रहते हैं तो आप लोग ध्यान से जाइएगा।
मोहन के साथी डर गए परंतु मोहन ने सबको हौसला देते हुए कहा – “आप सब मत डरिए, हम सुरक्षित ही इस रेगिस्तान को पार कर लेंगे” और मोहन और उसके साथी रेगिस्तान की तरफ चल पड़े।
जैसे ही मोहन और उसके साथी आधे रेगिस्तान में पहुँचे तो उनको कुछ लोग मिले और उन लोगों ने पूछा – “आप कहाँ जा रहे हो?”
मोहन ने बताया – “हम रेगिस्तान को पार करके बड़े बाजार में जा रहे हैं” तो उनमें से एक व्यक्ति बोला – “तो आप इतना सारा पानी क्यों ले जा रहे हैं, आगे तो पानी की एक बहुत बड़ी झील है आप अपने जानवरों पर अत्याचार कैसे कर सकते हैं, वे बेचारे तो बोल भी नहीं सकते और यह कहकर चले गए।”
मोहन के साथियों में से एक व्यक्ति बोला – “शायद यह सही कह रहे हैं, हमें अपने जानवरों पर इतना अत्याचार नहीं करना चाहिए। हमें पानी फेंक देना चाहिए, आगे जाकर तो पानी मिल ही जाएगा।”
मोहन ने बोला – “नहीं यह रेगिस्तान है और रेगिस्तान में केवल मरीचिका हो सकती है, पानी का तो सवाल ही नहीं उठता, आप लोग अपना पानी नहीं फेंकेंगे और उन गाँव वालों ने भी हमें समझाया था कि रेगिस्तान में नरभक्षी लोग रहते हैं शायद वह यही हैं आप सब डरे नहीं।”
फिर मोहन और इसके साथी रेगिस्तान को पार करने ही वाले थे तब मोहन की टोली को कुछ हड्डियाँ और बहुत सारा सामान बिखरा हुआ मिला। वह सामान और कपड़ों से समझ गए कि यह सोहन की टोली की हड्डियाँ और सामान है, शायद उसने इन नरभक्षी लोगों की बात मानकर अपना सारा पानी फेंक दिया होगा और नरभक्षी लोगों ने रात में सब लोगों को खा लिया होगा।
यह देख सभी को बहुत दुःख हुआ और रात ढलती देख वो आगे बढ़ चले। कुछ समय बाद ही मोहन और उसके साथी बड़े बाजार में पहुँच गए और उन्होंने अपना सारा सामान बहुत अच्छे दामों में बेचा और मोहन की समझदारी की वजह से सारे जानवर और सारे साथी सुरक्षित लौट आए।
कहानी से शिक्षा
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जीवन में आपको सलाह देने वाले कई लोग मिलेंगे लेकिन हर किसी की सलाह को मानने से पहले आपको अपनी सूझबूझ का भी इस्तेमाल करना चाहिए। कभी-कभी सामने वाला हमें गिराने या नुकसान पहुँचाने के लिए हमें गलत सलाह देता है और उस पर अगर हम अंधविश्वास कर लेते हैं तो हमारा बहुत नुकसान हो सकता है। अतः सबकी सलाह सुनकर अपने बुद्धि विवेक का प्रयोग कर ही कार्य करें।
पढ़ें – बकरी और जादूगर कसाई की कहानी।