कुत्ता चला परदेश ( पंचतंत्र की कहानी – panchtantra ki kahaniyan ) – बहुत पुरानी बात है एक नगर में एक काला कुत्ता रहता था और बमुश्किल पुरे दिन भटकने के बाद अपना पेट भर पाता था। एक साल उस नगर में भयानक अकाल पड़ा और अब उस कुत्ते और उसके साथियों का एक वक्त पेट भरना भी मुश्किल हो गया।
खाना ठीक से न मिल पाने के कारण कुत्ता बहुत परेशान हो गया था उसने अपने साथी कुत्तों से कहा कि वह चाहता है की वह सब कहीं दूर किसी और नगर में चले जाएँ तो वहां शायद उन्हें पेट भर के खाना मिल सकता है।
उसकी यह बात सुन बाकि कुत्ते उस पर हंसने लगे और कहने लगे कि जैसा भी हो अपना घर अपना ही होता है और हम यहाँ जैसे भी रहें सब साथ ही हैं और तुम बाहर जाओगे तो वहां भी तुम्हें मुश्किलों का सामना करना ही पड़ेगा।
काले कुत्ते ने बाकि कुत्तों की बात नहीं मानी और वह कहीं दूर के नगर में चला गया। उसने देखा कि नई जगह पर खाने-पीने की कोई कमी नहीं थी। वह एक घर के पीछे रहने लगा जहाँ घर का मालिक अपना बचा-कुचा खाना फेंक दिया करता था जिसे खाकर कुत्ता काफी खुश था अब उसे रोजाना मनपसंद खाना पेट भर के खाने को मिलता था।
एक दिन उसी नगर के कुत्तों ने उसे खाना खाते हुए देख लिया और उसे देखते ही वे समझ गए कि यह कुत्ता तो बाहर से आया है और उनके हिस्से का खाना वह खा रहा है। इस बात से चिढ़कर उन कुत्तों ने उस पर हमला कर दिया। सारे कुत्ते उस पर भौंकते हुए टूट पड़े और उसे जगह-जगह से बुरी तरह घायल कर दिया।
आख़िरकार, किसी तरह वह काला कुत्ता उन कुत्तों झुण्ड के चंगुल से छूटकर, वहां से भागा और सोचने लगा कि “यह जगह छोड़ देने में ही भलाई है। मेरे नगर में भले ही अकाल पड़ा हो, लेकिन कम से कम वहाँ मेरे पाने साथी-संगी तो हैं जो सुख-दुःख में हमेशा मेरे काम आते हैं।”
कहानी से शिक्षा
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि बाहर की दुनिया कितनी भी अच्छी क्यों न हो लेकिन अपना घर, अपना होना घर ही होता है और मुसीबत में अपने ही काम आते हैं। समस्याएं हर जगह होती हैं और अपने घर की समस्याओं से भागने की बजाये उसका निडरता से सामान करना चाहिए।
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